सोमवार, 5 सितंबर 2011

“मर्ज़ी का प्यार बनाम मज़बूरी का प्यार

दोस्तों प्यार क्या है ? हरेक प्रेमी और विचारक अपनी २ समझ + रूचि और स्वभाव के अनुसार इसकी अलग -२ व्याख्या करता है ….. लेकिन एक बात तो तय है की हरेक युग में प्यार में स्वार्थीपन और त्याग + बलिदान में संघर्ष चलता रहा है …… युग के प्रभाव के अनुसार ही इसमें स्वार्थ और त्याग तथा बलिदान की मात्रा अलग -२ रही है ……
प्रेम सिर्फ देने तथा त्याग का ही दूसरा नाम है , इस बात को मानने वाले आजकल न के बराबर रह गए है ….. आजकल तो प्यार सिर्फ और सिर्फ पाने का ही नाम रह गया है ….. रूह की गहराइयों से कोसो दूर आकर्षण युक्त सिर्फ सतही प्यार ….. ऐसे प्यार का भूत दिलो दिमाग से बहुत ही जल्दी उतर जाया करता है …… ऐसे भी पति – पत्नी के जोड़ें है जिनकी की सारी की सारी उम्र साथ रहते हुए तो बीत जाती है , दर्जनों बच्चे भी हो जाते है , लेकिन अगर उनसे यह पूछा जाए की उन्होंने अपने –२ जीवनसाथी से क्या वास्तव में प्यार किया ? और अगर किया तो कितना ? …… ज्यादातर का जवाब शायद नहीं में होगा …… जब भीतर में उमंग और चाहत ही नही होगी तो प्यार कहाँ से उपजेगा ?….. हम लोग नियति के बनाए हुए रिश्तों में मजबूरी का फर्ज रूपी प्यार करते नही बल्कि उस मज़बूरी के प्यार को भी अपनी जिंदगी मान कर ढोते रहते है …..
इसका मतलब यह नहीं की मैं इस बात के हक में हूँ की सभी को प्रेम विवाह कर लेना चाहिए …… प्रेम विवाह करने वालो का तो और भी बुरा हाल है …… उनकी सफलता का प्रतिशत तो अरेंज्ड मैरिज वालो की तुलना में कहीं भी नहीं ठहरता …… मेरे कहने का मतलब बस इतना भर है की आप विवाह चाहे प्रेम – विवाह करिए या फिर अपने बड़े बजुर्गो की मर्जी से ….. जिससे भी आपका नाता एक बार जुड़ जाए बस फिर उसी को अपना सब कुछ मान कर उसी में डूबकर अपने तन मन और रूह की गहराइयों से प्यार कीजिये … किसी और से सम्बन्ध रखना तो दूर की बात , किसी गैर के बारे में कोई ख्याल लाना भी आपके लिए पाप होना चाहिए ……..
मेरे कालेज के समय में जो साथी लड़के मुझसे किसी लड़की का पीछा करने और उसका घर देख आने में सहायता मांगते थे तो मैं उनसे पहले उनके इष्टदेव के नाम पर यह वचन ले लेता था की अगर उस लड़की से बात बनी तो फिर वोह शादी भी उसी से करेगा …… मैं यह देख कर हैरान रह जाता था की वोह एक सेकंड से पहले शपथ उठा लेते इश्वर के नाम की ……. वोह ज्यादातर समय मेरे साथ ही गुजारते थे , फिर भी पता नही मन के किसी कोने से यह आवाज आती थी की यह अपने वादे पर पूरा नही उतरेंगे ….. मुझको अचरज होता है की जब मुझको उनको साथी होने पर उन पर पूरा विश्वाश नही था तो आजकल की लड़किया लड़को पर किस बिनाह पर विश्वाश कर लेती है ……
शायद इसके दो ही कारण हो सकते है मेरी नजर में …. पहली बात जो जेहन में आती है की यह सच ही कहा गया है की प्यार अंधा होता है ….. जिसमे पड़कर प्रेमी अपना विवेक और सोचने समझने की शक्ति खो देते है ….. दूसरा कारण यह हो सकता है की वोह कहावत जोकि हम लोग अपने बड़े बजुर्गो से सुनते और किताबों में भी पढ़ते आये है की सुन्दर औरते मुर्ख होती है , उनकी अक्ल घुटनों में या फिर उनकी जुल्फों में निवास करती है ….. और यह बात आप सभी भली न्हंती जानते है की आजकल की छोरियों की जुल्फे रही ही कहाँ ….. तो उनकी उसी जन्मजात कमजोरी का फायदा लम्पट पुरुष अक्सर उठाया करते है , और अपना उल्लू सीधा किया करते है …… इस मामले में तो बेचारी कुदरत भी अपनी हार मान लेती है …… उस पराशक्ति ने नारी को इसी कमजोरी पर काबू पाने के लिए और दुनिया का सामना करने के लिए उसको छठी इंद्री रूपी सजगता से नवाजा है जिसको की आजकल हम सिक्स्थ सैंस के नाम से भी जानते है ……
लेकिन आजकल के जमाने में नारियों का यह गुण दब गया है , मुझको तो यही डर है की कम होते -२ कहीं यह एक दिन बिलकुल ही खत्म ना हो जाए …… चाहे हम कितना भी तरक्की क्यों न कर ले , आदमी कितना भी क्यों न गिर जाए , नारी कितनी भी पतित क्यों न हो जाए , लेकिन फिर भी मेरे मन में यह आस और विश्वाश है की वोह दीन कभी नहीं आएगा , जब नारी प्रकर्ति द्वारा अपने इस गुण रूपी हथियार से वंचित हो जायेगी…