शनिवार, 8 जनवरी 2011

हर जनम में पाऊँ कन्या रूप

समुद्र के गर्भ में छिपे सीप की कोख में पलते मोती की नैसर्गिक चमक, बंद कोंपलों में खिलते फूल का मादक यौवन या फिर तपती धरती पर नीले नभ से गिरी बारिश की पहली बूँद की शीतलता ... ये सभी सृजन के रूप हैं ... प्रकृति ने यही वरदान स्त्री को भी दिया है। उसकी कोख से जन्मी बेटियाँ ही इस वरदान को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाती हैं।

वह दौर बीत गया जब लड़कियों के जन्म पर शोक छा जाता था। आज तो बेटियाँ वो पावन दुआएँ हैं, जो हर क्षेत्र में अपनी सफलता के लिए आदर्श बन रही हैं। आज की नारी इन सभी पुराने अंधविश्वासों व रूढ़ियों पर विजय पाकर अपनी श्रेष्ठता का प्रतिपादन कर रही है। आज हर नारी को अपने कन्या रूप में जन्म लेने पर शर्म नहीं बल्कि गौरव महसूस होता है। हमने महिला सशक्तिकरण के इस दौर में कई महिलाओं से चर्चा की व जाना कि क्या वे अगले जन्म में फिर से लड़की के रूप में जन्म लेना चाहेंगी या नहीं?