इस अंतर मन को क्या मैं पुछु और क्या मैं इस की सुनु
ख्वाबो में तो रोज़ मुलाकात होती हैं पर ये समझता ही चला जाता है
जाने मन के किस कोने में छुप सो जाती है, सच्चाई
फिर तो दुसरे दिन ही मुलाकात हो पति है
पर तब तक तो वो इरादा बदला चूका होता है
ये सुनता तो बहुत ही कम है
चलो दोस्तों आज फिर इस से मिलने का इरादा बनाते है इस खोजते है इस नभ में , इस उपवन मैं उस सपनो की नगरी मैं
चलो चलो >>>>..............