शनिवार, 3 मार्च 2012

मेरी ब्रिज भूमि की होली




























जय श्री कृष्णा
फिर से दो दिन बचे है होली के फिर वही जाना है श्री कृष्ण के दरबार मे मा को फिर फोन पे दीवाली पे आने की दिलषा दे दी वही प्रेम रश मे डूबने जा रहा हू वाहा के तो वातावरण मे ही १ प्रेम रस है वाहा की भूमि पे पेर रखते ही १ अनूठी खुशी ओर मन शीतल होने का अहसास होने लगता है फिर वही जाना है इस बार भी

ये मेरी ब्रिज भूमि की दूसरी यात्रा थी ये बात गुरुवार १७/०३/२०१० होली के दो दिन पहले की है | मेने तो सोचा भी नहीं था ! की मुझे अचानक होली पे घर जाने के बदले ब्रिज की पवित्र भूमि पे जाना है शायद उपर वाले के खाते में सब कुछ पहले से ही तय था तो मैं कों न था ! जो उपर वाले का प्रोग्राम बदल देता !!!!! मुझे लग-भग ४ साल होगये कोई होली दिवाली मानने मे घर जा नही पाता हर होली दीवाली पे मे कही पे भी हो रामेश्वर, वृंदावन , साई नाथ, श्याम दरबार सालसर असी असे ही स्थानो पे जाता रहता हू पर जो भी हो हर समय वो कोई न कोई बहाना करके मुझे अपने पास बुला ही लेता है तभी शायद मैं भी आजकल कुछ जयादा ही भरोसा करने लगा हु मुझे भी घर जाना चाहिए ओर ये अपनी जगह सही है माँ तो वेसे भ नाराज़ चल रही है ६ महीनो से घर जो नही गया हू मेने २-४ लोगो को तो छुटी देदी और कुछ को ताल मटोल कर रहा था ! सब को समझा रहा था जो कुछ करना है दिली मे करो मस्ती या कुछ धमाल करना है यही पे करेंगे क्यूं की मुझे भी अपना दिल जो यही पे लगाना था पर कुछ देर अपने चेमर में बिल वगेर को देख रहा था की | फिर अचानक पिछले साल की बातो ने दिमाग पे घेरा ड़ाल दिया पता ही नहीं चला की कब सायं के ५.३० बज चुके है ?फिर मैं अपने दफ्तर से निकल के अपने कैंटीन में आया और अपने कुछ राजस्थानी भाइयो को बुलाया और पिछले साल की होली के बारे में बताया तो हम लोग ८-९ आदमी होली मानाने के लिए वृन्दावन मथुरा गोकुल , नन्द गोवं बृज भूमि जाने के लिए राज़ी होगये मेरी दूसरी यात्रा थी

कैमरे में कैद होली