कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ एक पहल: आज इस कलयुग में कुछ लोग बेटी के जन्म को मुसीबत मानने लगे हैं और कन्या भू्रण हत्या का प्रचलन तेजी से बढ़ता चला जा रहा है। बेटी के पैदा होने पर घरों में मातम छा जाता है। सांझे चूल्हे और संयुक्त परिवार लगभग खत्म होते जा रहे हैं। हर एक रिश्ता सिर्फ और सिर्फ मतलब का रिश्ता बनता चला जा रहा है।
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इस समूह ने बड़े बड़े दानियों से दान लेकर नहीं बल्कि खुद अपने संसाधनों से शादी विवाह में काम आने वाले तमाम छोटे बडे़े साजो सामान जुटा लिये हैं। संगठन से जुड़े युवा लड़की के घर वालों को आर्थिक मदद देने के साथ-साथ मिनटों में हर सामान की व्यवस्था कर देते हैं।
इस युवा समूह के सदस्य शादी ब्याह के वक्त लड़के वालों की आव भगत और खाने पीने की व्यवस्था भी खुद ही देखते है। सन् 2002 में बने इन संगठन के द्वारा लाभान्वित कई ग्रमीणों का कहना है कि उन्हें बेटी की शादी में कोई भी परेशानी या भाग दौड़ नहीं करनी पड़ती।
यंू तो बेटी का विवाह एक सामाजिक परम्परा है लेकिन अगर ऐसी ही एक सोसायटी हम सब लोग भी मिलकर बना लें और आपस में एक दूसरे का हाथ बटाने लगें तो बेटियों की शादी हम लोग और अच्छे ढंग से कर सकते है। इन युवाओं की पहल और इन के इस जज्बे को पूरे देश को सलाम करना चाहिये और अपनाना चाहिये। आज इस दौर की जरूरत है इस अच्छी और आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ाने वाली इस परम्परा की।
क्यों आज हम अपनी सभ्यता अपने आदर्शों और अपनी अपनी उन मजहबी किताबों के उन रास्तांे से भटकने लगे है जो हमें इंसान बनाती हैं और अच्छे और सच्चे रास्तों पर चलना सिखाती है। इंसान से मोहब्बत करना सिखाती है। शायद पैसे का लालच, समाज में मान सम्मान पाने का जुनून, अपने बच्चों के लिये राजसी सुख सुविधाओं का ख्वाब या फिर आज हमारे समाज में विकराल रूप धारण कर चुके दहेज के दानव के कारण हम कन्याओं को जन्म दिलाने से डरने लगे हैं जो कन्या भू्रण हत्या का मुख्य कारण हैं।
आज हम इंसान बनना क्यों भूलते जा रहे है, यह हम सब को सोचने जरूरत है क्योंकि इत्तेफाक से हम सब इंसान हैं। बेटियों से घर आंगन में रौनक है। ममता, प्रेम, त्याग, रक्षा बन्धन और न जाने कितनी परम्परायें जीवित हैं। कन्या भ्रूण हत्या पाप ही नहीं, देश और समाज के लिये अभिशाप है।