http://vangaydinesh.blogspot.com/बेटी हूं मैं, कोई पाप नहीं
भारत में लगातार बढ़ती जनसंख्या एक चिंता का विषय बनी हुई है विश्व में चीन के बाद भारत दूसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है जहां एक ओर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन का दवाब विकास की गति को बाधित कर रहा है वहीं दूसरी ओर भू्रण हत्या के कारण घटता लिंगानुपात समाज के संतुलन को बिगाड़ रहा है। भारत में कन्या भ्रूण हत्या का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है।सरकारी स्तर पर किए गए तमाम प्रयासों के बावजूद इसमें कमी नहीं आ रही है।
आजादी से पहले लड़किया मात पिता पर बोझ समझी जाती थी और पैदा होने के बाद ही उन्हे मार दिया जाता था लेकिन विज्ञान के बढते दायरे ने भ्रण हत्या को बढ़ावा दिया है भारत विश्व में के उन देशों में शामिल है जहां पर लिंगानुपात में भारी अंतर है लिंगानुपात से मतलब होता है प्रति हजार पुरूषों में महिलाओं की संख्या 1901 में भारत लिंगानुपात 972 जो कि गिरते गिरते 1991 में 927 हो गया1991 2001 में यह अनुपात 933 हुआ 2001 की जनगणना में लिंगानुपात की स्थिति ने इस बात पर बल दिया कि भारत में लिंग विरोधीसमाजिक व्यवस्था में परिवर्तन आ रहा है लेकिन इसी जनगणना में जब हम 0-6 वर्ष आयु के लिंग अनुपात में नज़र डालें तो सारी आशाएं चकनाचूर हो जाती है इस वर्ग में लिंगानुपात औऱ भी कम हो गया था जिससे इस बात का पता चलता है कि देश में लिंग भेद व्यवस्था कमजोर होने बजाये और फिर मुखर हो रही हैएक सर्वे के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष पांच लाख कन्या भू्रण हत्या होती है तथा पिछले दो दशक में एक करोड़ लड़कियां कम हो गई हैं।आलम यह कि लिंगानुपात का यह सामाजिक दुष्परिणाम पंजाब औऱ हरिय़ाणा जैसे राज्यों में सबसे अधिक है जहां युवकों का विवाह कठिन होता जा रहा है तो दूसरी तरफ पर्वी बिहारऔर पूर्वी उत्तर प्रदेश में लड़कियों के लिए भारी रकम खर्च कर उन्हे खरीदा तक जा रहा है खरीद कर लाई गई दुल्हनो को समाज औऱ परिवार दोनों जगहों पर ही सम्मान नहीं मिल पाता है यूनीसेफ के 2007के आंकड़ो पर यकीन करें तो लड़कियों की स्थिति को लेकर भारत का स्थान पाकिस्तान और नाइजीरिया से भी नीचे है।यूनीसेफ की इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोजाना 7000 लड़कियों की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है।देश में लिंग जांच औऱ कन्या भ्रूण हत्या एक बड़ा व्यवसाय बनकर उभरा है।विश्व की बेहतरीन तकनीकों का निर्माण करने वाली कंपनियों के लिए भारत अलट्रासाउंड़ मशीनों के व्यापार का एक बड़ा स्त्रोत बनकर उभरा है ।एक अनुमान है कि हर साल देश 300करोड से भी ज्यादा की मशीनें बाजार में बेज दी जाती हैं इन आधुनिक तकनीकों के चलते यह सुलभ हो गया है। आसानी इस बात का पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में पल बच्चा लडका है या लडकी मध्य प्रदेश में सबसे कम लिंगानुपात वालें जिले मुरैना मे तो हर गली में इस मशीने आपको देखने में मिल जायेगी कन्या भ्रूण हत्या के आंकड़ों को देखे तो यह प्रवृत्ति गरीब परिवारों के बजाए संपन्न घरों में अधिक है। महिलाएं चाहे जितनी भी शिक्षित हो जायें लेकिन परिवारिक दबाब और भावनाओं के चलते लडके औऱ लड़कियों में से उनकी पहली पसंद लड़के ही होते हैं इसके पीछे सबसे बड़ा कारण समाज में बेटे की मां होना अपनेआप में गर्व का विषय होता है जहां बेटी पैदा होने पर दिन रात के ताने सुनने पड़ते है बहीं बेटे होने पर बहूओं को सर आंखों पर बिटाया जाता है।साथ ही साथ भारतीयों के भीतर बैठी एक विकृति भी कन्या भ्रूण हत्या के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है जिसका सीधा तालुक्क मोक्ष प्राप्ति माना जाता है भारतीय रीति अनुसार ऐसा माना जाता है कि बेटा ही कुल को स्वर्ग का रास्ता दिखाताहै।
दो बच्चों की अनिवार्यता और कन्या भ्रूण हत्या
परिवार का आकर सीमित करने और छोटे परिवार की धारणा को प्रबल करने के उद्देश से सरकार द्वारा दो बच्चों के सिद्धात को लागू किया सबसे पहले यह राजस्थान में 1992 में फिर हरिय़ाणा 1993 उसके बाद मध्य प्रदेश 2000 (जिसे वापस लिया गया था और अभी इसके बारे में मुझे पता नही है कि स्थिति क्या है),उड़ीसा 1993 आदि में लागू किया गया इस नियम के चलते दो अधिक संतानों वाले माता-पिता चुनाव में उम्मीदवारी और पंचायत राज संस्थाओं की स्वायत्त शासन की आधारभूत इकाईयों यथा पंचायती राज संस्थान और स्थानीय नगरीय निकायों में किसी भी पद के लिए अयोयग्य करार दिया है( राजस्थाम में लागू है) इन राज्यों में इस फैसले ने भी कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपरोधों को प्रोसाहित ही किया हैएक सर्वे के अनुसार इन सिंद्धात की बजह से समाज में महिलाओं की स्थिति पहले से ज्यादा बदतर हुई है।इसमे जबरिया गर्भपात कन्या शिशुओं का परिस्याग लोगों राजनैतिक आकंक्षाओं की बलि चढती जा रही है। राजनैतिक महत्वकाक्षांओं की पूर्ति के लिए बालिकाओं के प्रति उपेक्षाभाव,पतियों द्वारा पत्नियों का परित्याग कलह और बेटे को ही पैदा करने का दबाब महिलाओं पर पड रहा है
निर्णय लेने की अधिकारी नहीं है महिलाएं
घर में खाना बनाने के लिए जहां84 प्रतिशत महिलाएं स्वयं निर्णय ले सकती है बहीं सामाजिक और रीतिगत मामलों में उन्हें निर्णय लेनेका अधिकार सिर्फ 40 प्रतिशत ही है।समाज में 50 प्रतिशत से भी ज्यादा महिलाएं अपने पतियों की हिंसा की शिकरा होती है तो 49 प्रतिशत महिलाएं ही पुरूषों के मुकाबलें कार्यशीलहैं।समाजिक दबाब के चलते उनके कानों यह बात बार बार डाली जाती है कि बगैर बेटे को पैदा किये समाज में उन्हें सम्मानजनक स्थान नहीं मिल सकता है।हमें मिलकर इस सामाजिक बुराई से लडना होगा समय के साथ साथ लडके औऱ लड़कियों के बीच के भेद को मिटाना होगा नहीं तो कहीं लड़किया सिर्फ वेश्यालयों मे ही ना पैदा होने लगे और हमारा संभ्रात समाज अपनी ही सोच के चलते सिमट कर ना रह जाये इन हालातो में एक बात जरूर हमें समझ लेनी चाहिए कि .यदि हम बेटियां नहीं चाहेगें तो हमे बहुए भी नसीब नहीं होगीं
“यहां आने से पहले बेटी पूछती है खुदा से
संसार तूने बनाया, या बनाया है इन्सां ने
मारे वो हमको जैसे, हम उनकी संतान नहीं
डर लग रहा है कभी वापस भेज न दे वो हमें यहां से
कहा फिर उस खुदा ने कि भूल गया है इन्सां
जहां बेटी नहीं है बता वो कौन सा है जहां
वक्त एक ऐसा आएगा, ‘औरत’ शब्द रह न जाएगा
फिर पूछूंगा इन्सां से, अब तू ‘बेटा’ लाएगा कहां से”
दिनेश पारीक
14 टिप्पणियां:
प्रिय भाई दिनेश आप अच्छा लिख रहे बधाई |
Hi, Its a nice article. Loved it. Keep doing the good work.
इस सार्थक पोस्ट के लिए आप बधाई के पात्र हैं...
नीरज
bahut accha dinesh ji
bus isi tarah lage rahiye
bahut sarthak post hai aapki badhayi
..
badhai swikaray. bahot thos bate hai yaha jo likhi gai hai.
aur meri post per ap ki tipnni ke liye khub khub shukriya .. keep reading and keep posting...
Very right and relevant. Infanticide is a devilish act.
बहुत सारगर्भित आलेख प्रस्तुत किया है आपने!
लेख बहुत अच्छा और विचारणीय है।
आपको बहुत-बहुत बधाई !
विषय को सम्पूर्णता के साथ रखा है, बधाई।
अत्यंत आवश्यक विषय और बढ़िया लेख !!
शुभकामनायें !!
बढ़िया लेख
अच्छा लिखा है , मगर मैं इससे सहमत नहीं हूँ की महिलाओं को स्वतंत्रता नहीं है बल्कि मेरा अनुभव है की खुद महिलाएं इस पाप कर्म में संलग्न है !
Beautifully written blog post. Delighted Im able to discover a webpage with some insight plus a very good way of writing. You keep publishing and im going to continue to keep reading.
एक टिप्पणी भेजें