मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

आपबीती को मैं जगबीती बनाता हूँ


आपबीती को मैं जगबीती बनाता हूँ

न मैं कंघी बनाता हूँ न मैं चोटी बनाता हूँ
ग़ज़ल में आपबीती को मैं जगबीती बनाता हूँ
ग़ज़ल वह सिन्फ़-ए-नाज़ुक़ है जिसे अपनी रफ़ाक़त से
वो महबूबा बना लेता है मैं बेटी बनाता हूँ
हुकूमत का हर एक इनआम है बंदूकसाज़ी पर
मुझे कैसे मिलेगा मैं तो बैसाखी बनाता हूँ
मेरे आँगन की कलियों को तमन्ना शाहज़ादों की
मगर मेरी मुसीबत है कि मैं बीड़ी बनाता हूँ
सज़ा कितनी बड़ी है गाँव से बाहर निकलने की
मैं मिट्टी गूँधता था अब डबल रोटी बनाता हूँ
वज़ारत चंद घंटों की महल मीनार से ऊँचा
मैं औरंगज़ेब हूँ अपने लिए खिचड़ी बनाता हूँ
बस इतनी इल्तिजा है तुम इसे गुजरात मत करना
तुम्हें इस मुल्क का मालिक मैं जीते-जी बनाता हूँ
मुझे इस शहर की सब लड़कियाँ आदाब करती हैं
मैं बच्चों की कलाई के लिए राखी बनाता हूँ
तुझे ऐ ज़िन्दगी अब क़ैदख़ाने से गुज़रना है
तुझे मैँ इस लिए दुख-दर्द का आदी बनाता हूँ
मैं अपने गाँव का मुखिया भी हूँ बच्चों का क़ातिल भी
जलाकर दूध कुछ लोगों की ख़ातिर घी बनाता हूँ
दिनेश पारीक 
दुस्र्भाश नो. ९५८२५९८२४४ 

23 टिप्‍पणियां:

लाल कलम ने कहा…

bahut sundar

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

बहुत सुन्दर जनोन्मुखी ग़ज़ल ...हर शेर ज़मीन से जुड़ा हुआ .....बेहतरीन

Anita ने कहा…

उम्दा गजल, आपके ब्लॉग में वर्तनी की कुछ गलतियाँ खटक रही हैं कृपया उन्हें ठीक कर लें.

मनोज कुमार ने कहा…

आप लाजवाब लिखते हैं। ग़ज़ल न सिर्फ़ दिल में बल्कि दिमाग में भी जगह बनाती है।

Vivek Jain ने कहा…

बहुत सुन्दर, बहुत सार्थक


विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

ek umda gajal........

Dr Kiran Mishra ने कहा…

aap ki gajal hatke hai achha likhte hai post padkar kiya kare kuchh galtiya ho jati hai. bahut sundar rachna

Ashish (Ashu) ने कहा…

बहुत खूब मित्र...

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर, बहुत सार्थक ग़ज़ल

बीनाशर्मा ने कहा…

पहली बार आपके ब्लोग पर आई अच्छा लिखते हैं बस थोड़ा सा वर्तनी की तरफ भी ध्यान दीजिए वर्तनी की गलतियां भावों को संप्रेषित होने में बाधक बन जाती है| आशा है आप इसे सही अर्थ में ही ग्रहण करेंगे|

रचना दीक्षित ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Apanatva ने कहा…

tareef ke liye shavd kum padenge.......bahut suljhe aur sunder khayalo aur soch kee upaj hai ye gazal........
behatreen.abhivykti.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

bahut asardaar likha hai.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

वाह ...बिलकुल अलग अंदाज़ है आपका ....

हुकूमत का हर एक इनआम है बंदूकसाज़ी पर
मुझे कैसे मिलेगा मैं तो बैसाखी बनाता हूँ

बहुत खूब ....

तुझे ऐ ज़िन्दगी अब क़ैदख़ाने से गुज़रना है
तुझे मैँ इस लिए दुख-दर्द का आदी बनाता हूँ

क्या बात है .....

दिनेश जी यूँ तो सभी शे'र कुछ नए अंदाज़ के हैं ....
पर ये तो बस कमाल ही है .....
दिली दाद कबूल करें .....

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर शब्द रचना| धन्यवाद|

Minakshi Pant ने कहा…

bahut khubsurat gazal

Rakesh Kumar ने कहा…

सर जी कमाल है आपका तो
आपने तो आप बीती भी और जगबीती भी दोनों ही बता दी हैं.
हमे भी आप दुःख दर्द का आदी बना देंगें,अब तो ऐसा ही लगता है मुझको.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

बेनामी ने कहा…

Bahut khoob Dinesh.

Roshani Sahu ने कहा…

I'm sorry my name is Roshani. Kisi karan wash mujhe Anonymous ho kar comment karna pad raha hai. Thanks for comment in Jeevan Vidya.

बेनामी ने कहा…

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