शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

मेरी बिटिया की बाई की बाई

मेरी बिटिया की बाई की बाई

छोटी बिटिया की महरी बहुत कुशल है। एक्स्पर्ट या निपुण की कोटि में आती है। दो साल की नौकरी में वह 600 रुपये से 3000 रुपये की पगार व एक बच्चे की 800 रुपये प्रति माह की फ़ीस +पुस्तकें + वर्दी आदि पर पहुँच गयी है। उसका काम इतना अच्छा है कि बिटिया उसे झाड़ू पोछे व बर्तन साफ़ करने से शुरू कर घर की केयरटेकर तक ले गयी। हर कुछ महीने में उसकी पगार बढ़ती गयी और वह कुछ नयी जिम्मेदारी सम्भालती गयी। अब तो यह हाल है कि वह कहती है कि अब मेरी पगार मत बढ़ाना क्योंकि अब आपके घर में मेरे करने लायक और कोई नया काम नहीं बचा है।

बिटिया उसे घर की चाभी देकर जाती है। जब काम से घर लौट कर आती है तो चमचमाता, साफ़ सुथरा घर मिलता है। ऐसा लगता है जैसे उसके जाने के बाद किसी ने जादू से उसका घर चमका दिया हो।

पति द्वारा सताई गयी व छोड़ी गयी सरस्वती को आज इतना खुश व सफल देख बिटिया व मेरा मन बहुत खुश हो जाता है। पिछले साल ही तो जब उसे एक दुर्घटना में चोट लगी थी तो हमने उसकी सेवा की थी। छोटी सी चोट ऐसी बिगड़ी कि उसे औपरेशन कराना पड़ा। हाँ, उसने 800 रुपये देकर महरी रख ली थी।

अब जबकि वह ठीक हो चुकी है तब भी वह उस महरी को निकाल नहीं पायी है। कहती है कि उसे वह निकाल नहीं सकती, कि वह बुढ़िया है, कि उसे उसके बच्चों से मोह हो गया है। कि करने दो उसे भी काम ना! कि आप लोग मुझे इतना देते हो। कि इतना पाने का तो मैने स्वप्न भी कभी नहीं देखा था। अब मैं जितने भी नये घर पकड़ती हूँ केयरटेकर कहकर ही पकड़ती हूँ ना कि महरी कहकर और मेरी कमाई इतनी होती है कि मैं बहुत खुश हूँ।

बिटिया के घर का पुराना सोफ़ा,(उसका सामान कितना पुराना हो सकता है? उसकी उम्र ही क्या हुयी है?) लगभग सारा पुराना फ़र्नीचर उसके ही घर में है। ढेरों बर्तन आदि सब उसके ही घर पहुँचते हैं। किन्तु मुझे जो बात सबसे अधिक मोहित करती है वह है उसके पास भी महरी का होना।

कया बाई की भी बाई होना उन्नति है? जो भी हो मुझे प्रगति लगती है।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

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