गुरुवार, 3 मार्च 2011

निन्दक ‘नियरे’ राखिए

निन्दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी-साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ….बचपन में जब टीचर ने कबीरदास जी का यह दोहा हमें डंडे के बल पर याद करवाया था, तब मैंने कभी नहीं सोचा था कि कभी सचमुच मुझे यह दोहा मन ही मन दोहराकर किसी तरह निन्दकों पर भड़ास निकालने से बचने के उपाय खोजने होंगे. अब काफी हद तक यह समझ में आने लगा है कि बेचारे कबीरदास जी को किस तरह निन्दकों की तमाम पटखनियां सह-सहकर यह दोहा लिखने को मजबूर होना पड़ा होगा. वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर परसाई ने निंदारस पर केवल एक कहानी लिखकर अपनी भड़ास निकाल ली, लेकिन मेरा मानना है कि निंदारस पर अगर एक उपन्यास लिख डाला जाए तो भी शायद इस रस के माधुर्य को व्यक्त नहीं किया जा सकता. अपनी धोती बचाकर रखने के लिए निन्दक अक्सर निंदा रूपी ब्रह्मअस्त्र का उपयोग किया करते हैं. ऐसे ‘फालतू टॉकिंग एलीमेंट्स’ आपको हर जगह मिल जाएंगे. घर से निकले नहीं की पड़ोस के तिवारी जी कहने लगे ‘आपका सही है, आफिस की गाड़ी में पसरे और निकल लिए…हमारे ऐसे भाग कहां’. ऑफिसेज में तो ऐसे निंदकों की तमाम वैरायटीज अवेलेबल हैं. जो बात-बे-बात आपकी टांग खिंचने का मौका तलाशते रहते हैं, हांलांकि कई बार टांग खिंचने की कोशिश में उन्हें जोरदार लातें भी खानी पड़ती हैं, लेकिन उनका उद्देश्य उन्हें किसी भी हाल में निंदारस से ओत-प्रोत रहने पर मजबूर कर देता है. अपने साथियों की बुराईयों का ब्यौरा दूसरे लोगों को देना यह लोग अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. कई बार तो लगता है कि यह घर पर जाकर यही प्लानिंग किया करते हैं कि किस तरह अपने तथाकथित भुक्तभोगी को ज्यादा से ज्यादा जलील किया जाए. खुद का जलीलपना यह लोग याद नहीं करना चाहते. आपकी एक सक्सेस के पीछे कितने लोगों की दुआएं हैं यह भले ही आपको पता न चल पाएं, लेकिन मन ही मन कितने लोगों ने आपको गालियां दी हैं इसका पता आपको दो-चार दिन बाद पता चल ही जाता है. अक्सर लाइफ से हारे हुए यह वो लोग होते हैं जो अपनी लाइफ में खुद कुछ नहीं कर पाते, लेकिन समाज सुधारने की बातें करवानी हों तो इनसे बड़ा वक्ता आपको ढूंढे नहीं मिलेगा. लोगों के सामने अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने का गुर कोई इनसे सीखे. समाज सुधारने की बात कहा करते हैं, लेकिन अपने मन में छुपे मैल से मुक्त नहीं हो पाते. ‘मुंह में राम, बगल में छुरी’ लिए यह निंदक बात-बेबात आपको नीचा दिखाने की जुगत भिड़ा रहे होते हैं. आपके अचीवमेंट के चर्चे आपको दूसरे लोगों के व्यंग्यबाण के साथ जब मिलते हैं तो आप झट से समझ जाते हैं कि यह आग अपने रामगोपाल वर्मा की नहीं किसी और की लगाई हुई है. पिछले दिनों एक शो के दौरान शाहरूख खाने कहा था कि ‘बुरा मत देखिए, बुरा मत कहिए, बुरा मत सुनिये….क्योंकि अगर आप ऐसा करेंगे तो कोई आपको अपनी पार्टी में नहीं बुलाएगा. खैर ऐसे लोगों को सुधारा तो नहीं जा सकता बस इतना ही कह सकती हूं कि ‘खुदा तू हमें इन ‘दोस्तों’ से बचाए रखना, दुश्मनों से हम खुद ही निपट लेंगे’

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Great blog post, I have been looking into this a lot recently. Good to hear some more news on this. Keep up the good work!