कैमरे में कैद होली | |
या रंग में था कैमरा यह पता करना कठिन था झर रहे थे रंग हाथों सेया बस रहे थे हाथ रंगों में रंग का त्यौहार था या हार में गूँथे हुए थे रंगदेखकर भी जान पानाउस समय मुमकिन नहीं था कोई हीरामन कहीं अंदर बसा था कोई हरियल सुआ हाथों पर जमा थाकोई पियरी उड़ रही थी कैमरे मेंकोई हल्दी बस रही थी उँगलियों में रास्तों पर रंग बिखरे थे हवा मेंहर कहीं उत्सव की धारें आसमाँ में खुशबुओं के थाल नजरों से गुजरतेऔर परदे पार चूड़ी काँच की बजती खनक सीइक हँसी... जाती थी दिल के पार- गहरी उस हँसी से लिपट पियरी नाचती थी उस हँसी में डूब हीरामन रटा करता था- होली... एक पट्टा कैमरे में और वह पट्टा गले मेंकैमरे में गले से लटका हुआ वह शहर सारा कैमरे में कैद होली होलियों में शहर घूमा रंग डूबा- कैमरा यों ही आवारा कैमरे में कैद थी होली कि या फिर होलियों में कैद था वह कैमरा कहना कठिन था ---दिनेश पारीक यह मिट्टी की चतुराई है, रूप अलग औ’ रंग अलग, भाव, विचार, तरंग अलग हैं, ढाल अलग है ढंग अलग, आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो। होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को! निकट हुए तो बनो निकटतर और निकटतम भी जाओ, रूढ़ि-रीति के और नीति के शासन से मत घबराओ, आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो। होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो! प्रेम चिरंतन मूल जगत का, वैर-घृणा भूलें क्षण की, भूल-चूक लेनी-देनी में सदा सफलता जीवन की, जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो। होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो! होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो, होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो, भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को, होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो! |
मंगलवार, 22 मार्च 2011
कैमरे में कैद होली
शनिवार, 12 मार्च 2011
सोच रहा हैं अरुणा शानबाग का बिस्तर
सोच रहा हैं अरुणा शानबाग का बिस्तर
मर तो तुम उस दिन ही गयी थी
जिस दिन एक दरिन्दे ने
तुम्हारा बलात्कार किया था
और तुम्हारे गले को बाँधा था
एक जंजीर से
जो लोग अपने कुत्ते के गले मे नहीं
उसके पट्टे मे बांधते हैं
उस जंजीर ने रोक दिया
तुम्हारे जीवन को वही
उसी पल मे
कैद कर दिया तुम्हारी साँसों को
जो आज भी चल रही हैं
और आज भी ३७ साल से वो बिस्तर ,
मै
तुम्हारा हम सफ़र बना
देख रहा हूँ तुम्हारी जीजिविषा
और सोच रहा हूँ
क्यूँ जीवन ख़तम हो जाने के बाद भी तुम जिन्दा हो ??
तुम जिन्दा हो क्युकी तुमको
रचना हैं एक इतिहास
सबसे लम्बे समय तक
जीवित लाश बन कर
रहने वाली बलात्कार पीड़िता का
उस पीडिता का जिसको
अपनी पीड़ा का कोई
एहसास भी नहीं होता
हो सकता हैं
कल तुम्हारा नाम गिनीस बुक मे
भी आजाये
क्यूँ चल रही हैं सांसे आज भी तुम्हारी
शायद इस लिये क्युकी
रचना हैं एक इतिहास तुम्हे
जहां अधिकार मिले
लोगो को अपनी पीड़ा से मुक्ति पाने का
उस पीड़ा से जो वो महसूस भी नहीं करते
आज लोग कहते हैं
बेचारी बदकिस्मत लड़की के लिये कुछ करो
भूल जाते हैं वो कि
लड़की से वृद्धा का सफ़र
तुमने अपने बिस्तर के साथ
तय कर लिया हैं
काट लिया कहना कुछ ज्यादा बेहतर होता
कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं
कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं
और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं
एक बिस्तर कि भी पीड़ा होती हैं
कब ख़तम होगी मेरी पीड़ा
अरुणा का बिस्तर सोच रहा हैं
और कामना कर रहा हैं
फिर किसी बिस्तर को न
बनना पडे
किसी बलात्कार पीड़िता
का हमसफ़र
लेकिन
बदकिस्मत एक बलात्कार पीड़िता नहीं होती हैं
बदकिस्मत हैं वो समाज जहां बलात्कार होता हैं
बड़ा बदकिस्मत हैं
ये भारत का समाज
जो बार बार संस्कार कि दुहाई देकर
असंस्कारी ही बना रहता हैं
शुक्रवार, 11 मार्च 2011
शादी की लड़ाई: बाहर टूटा विवाह के अपराधी को तोड़ने फेर्रेट
तलाक और तलाक के जटिल सामाजिक समस्याओं, कोई संदेह नहीं है, एक कठिन शादी की रक्षा की लड़ाई की एक श्रृंखला के द्वारा लाया की इतनी बड़ी संख्या के साथ रही है आसन्न है इस के लिए शादी की रक्षा की लड़ाई है, इसलिए है कि अंततः प्रेमियों बन जीतने के लिए. आश्रितों, व्यापक चिंता का विषय है इस के लिए शादी की रक्षा, हम शादी तोड़ चाहिए लड़ाई जीतने के लिए नीचे अपराधी टूटा, केवल अपराधी को खोजने के लिए के लिए समस्या का उपाय..अपराधी शादी के टूटने में तो क्या यह शादी के विशिष्ट मामले में हारे के आसपास के कुछ विश्लेषण है?, वास्तव में, के कारणों का पता लगाना है कि वहाँ कई पहलू हैं मुश्किल नहीं:
1.कम गहराई को समझने, फ़्लैश शादी कड़वा भरवां
अब सब कुछ करने के लिए, चला जाता है एक कहावत है कि नहीं दक्षता के बारे में बात लगता है "समय धन है, दक्षता जीवन है" ठीक है इतने सारे लोगों को वास्तव में शादी बम बरसाना पर खेल रहे हैं, पुरुषों और महिलाओं नहीं दिख रहा है कुछ दिन रहने के लिए लाल जोश हो! चक्कर मस्तिष्क, तो लगन, प्यार, में गहराई से समझ और आदान प्रदान भी बदतर, करने के लिए मिठाई विकल्प के बजाय कि उस प्यार और खुशी के लिए भुगतान कर सकते हैं, पैसा नहीं शादी के बाद लंबे समय से परिणाम, या हनीमून खत्म नहीं करता है भी सोचने के लिए,मुसीबत के लिए अपनी पूरी हाथ, रिश्ते टूटने, शादी के एक को समाप्त करने आने के लिए.
2.सहिष्णुता पर्याप्त नहीं, जिम्मेदारी की भावना मजबूत नहीं है
Zhongsuozhouzhi, दो लोग एक साथ आते हैं पति और पत्नी के रूप में संबंधित नहीं है, ठोस, अमर प्रेम Hunyin, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों पक्षों ने पहले एक दूसरे को मिलनसार सीखना चाहिए, जो भी सहिष्णुता एक दूसरे की कमजोरियों सहित, एक ही समय दूसरे पक्ष पर है, परिवार, जिम्मेदारी के बच्चे की भावना है, ताकि जोड़ों धीरे चला सकते हैं अप वास्तव में मैच के लिए.और अब कई युवा लोगों को बुनियादी तौर पर केवल एक ही बच्चे हैं, यह ठीक इस क्षेत्र में गुणवत्ता का अभाव है, ठेठ सुविधा दंभ है, दूसरों को सिर्फ मुझे जाने, और मैं दूसरों को, मनोवैज्ञानिक के इस तरह के, न केवल जीवन के आराम नहीं करना चाहते के पहलुओं सन्निहित युगल विवाहित जीवन में प्रचुर मात्रा में हर जगह देखा जा सकता है,दो शब्दों की भावनाएँ हल्के और तीन वाक्यों को नहीं करता है एक आम भाषा, सहनशीलता की कमी, सहिष्णुता के बारे में अधिक बात करते हैं, जो वैवाहिक जीवन टूटने में एक घातक कारक करने के लिए अग्रणी है नहीं नहीं कर रहे हैं.
3.शादी के बाद व्यस्त कैरियर, कम प्रशिक्षण प्यार
कई युवा लोगों को हमेशा सोचा है कि शादी के बाद एक सौदा किया है, काम का दबाव, सामाजिक सर्कल चौड़ा, व्यस्त सारा दिन मनोरंजन सेवाओं के साथ युग्मित, भले ही घर में एक निस्तेज, या शराब का राज्य है धुआं आकाश काला, और नव स्थापित शादी के लिए रखरखाव, जानबूझकर या अनजाने में बाहर अन्य संदेह, बाएँ की भावनाओं के रूप में उपेक्षा, शादी उन्मुख संस्कृति की परवाह नहीं की की कमी के बीच गलतफहमी और समय के साथ स्वाभाविक रूप से होती है, शादी अनिवार्य रूप से संकट और दरारें को बढ़ावा मिलेगा.लिटिल वे जानते हैं भावनाओं को विकसित करने और विशेष आवश्यकता समेकित जारी रखने के लिए शादी में, विशेष रूप से, यह पूरी तरह पहला प्यार, पहला प्यार से अलग है, कई वास्तविक, झूठे, प्रत्येक तत्व है, पुरुषों और महिलाओं के बीच शादी को कवर नहीं कर रहे हैं वास्तविक जीवन है, यह एक दूसरे के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं पूरी तरह से संपूर्ण सत्य बिखर, तब भी जब आप एक दूसरे की कमियों को नहीं देख सकता है प्यार में हैं,तो, शादी के पांच साल के भीतर, शादी एक ही बीज बोने की तरह है, ध्यान से संरक्षित किया जाना चाहिए, पूरी तरह खिलने में धीरे - धीरे उज्ज्वल फूल करने के लिए इतनी के रूप में.
4.मज़ा बिना जीवन, नवीनता बदौलत परिवार
एक दूसरे को आकर्षित करने के लिए, जोड़ों के लिए उनकी पोशाक, शादी की सजावट जब नया घर बहुत खूबसूरत फैशन भी है पर ध्यान केंद्रित करने लगे हैं, लेकिन ठंडा शादी की गर्मी के साथ, कई जोड़ों को न केवल आसान जीवन के लिए जुनून शांत करने के लिए, और परिवार के वातावरण भी बहुत आसान है पर गिर लोकप्रिय, बहुत प्रभावशाली है कि सुश्री गायब हो गया था, और सुंदर लड़कों ठाठ चले गए हैं, या घर की सजावट, जब शादी भी समय कटाव और दृश्य थकान की वजह से बेरंग बिल्कुल रोमांटिक हो जाता है,समय बीतने के, जीवन और नए विचारों के रंग काफी शांत करने के लिए जमा उबाऊ और पुराने ढंग का, कठोर, और बेस्वाद हैं, भावनात्मक संकट में जिसके परिणामस्वरूप.
खुला अपराधी आसानी वैवाहिक संकट को जन्म, विवाह की रक्षा सही पर्चे होने के पहले दोनों एक दूसरे से बहुत, में से एक में गहराई को समझने के माध्यम से पुरुषों और महिलाओं के साथ सभी संपर्क के लिए किसी भी स्टाइलिश फ्लैश शादी मार्ग के लिए किसी भी समय लेने के लिए नहीं की कोशिश करो;. एक ही समय अपने ही साक्षरता का विकास और एक दूसरे को समायोजित करने के लिए शादी की जिम्मेदारी स्थापित करने के लिए कि शादी समझना अधिक समावेशी और जिम्मेदारियों है;शादी के बाद विशेष रूप से, दोनों पार्टियों के लिए भावनाओं का विकास जारी रखने के लिए, भावनाओं का कारण सही नहीं है, दोनों के प्यार और शादी के फूल पानी पत्नियों, लेकिन यह भी, हमेशा की तरह, पूर्व वैवाहिक प्यार के रूप में एक ही समय.
न केवल उपकरण के जीवन और अधिक ध्यान अपने कपड़ों पर होने के लिए, और घर की सजावट के अपरिवर्तनीय नहीं हैं, दृश्य थकान से बचने के लिए है, लेकिन रंगीन होना चाहिए, हर गुजरते दिन के साथ, इस शादी को एक अप्रत्याशित रोमांटिक और अतिरिक्त उपहार ले जाएगा, और यह है कि हाल ही में कई दोस्त बाड़ लाइन में भाग लेने के लिए ब्राउज़ Dulux सजावट डायरी गतिविधियों उनके अद्वितीय फैशन रंगीन घर सुधार से प्रेरणा इन डायरियों प्राप्त देखने के लिए मुश्किल नहीं हैउनके विवाहित जीवन भरा हुआ है, एक रोमांटिक है, है रंग की प्यार से भरा है, और वे मानते हैं कि सुख एक आश्चर्य से बना है, वे इस घटना में भाग लेने के आशा है एक, के लिए एक अप्रत्याशित रोमांटिक सबा जीत है जोड़े या तो के रूप में अन्य पुरस्कार, एक आश्चर्य की एक और खुश शादी जोड़ने के लिए,गृह सुधार उनकी डायरी, साथ ही उनके रोमांटिक शादी देखा वास्तव में सभी लोग ईर्ष्या करेंगे.
संक्षेप में, शादी के लिए समझ है, अधिक सहनशीलता, जिम्मेदारी, प्रशिक्षण और देखभाल की जरूरत की जरूरत है.
सोमवार, 7 मार्च 2011
बेटी हूं मैं, कोई पाप नहीं
http://vangaydinesh.blogspot.com/बेटी हूं मैं, कोई पाप नहीं
भारत में लगातार बढ़ती जनसंख्या एक चिंता का विषय बनी हुई है विश्व में चीन के बाद भारत दूसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है जहां एक ओर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन का दवाब विकास की गति को बाधित कर रहा है वहीं दूसरी ओर भू्रण हत्या के कारण घटता लिंगानुपात समाज के संतुलन को बिगाड़ रहा है। भारत में कन्या भ्रूण हत्या का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है।सरकारी स्तर पर किए गए तमाम प्रयासों के बावजूद इसमें कमी नहीं आ रही है।
रविवार, 6 मार्च 2011
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ एक पहल
स्वच्छ सन्देश: भारत में मुस्लिम समाज ‘कन्या भ्रूण-हत्या’ की लानत से सर्वथा सुरक्षित है.
शनिवार, 5 मार्च 2011
स्त्री का अस्तित्व और सवाल
एक सवाल अपने अस्तित्व पर,
मेरे होने से या न होने के दव्न्द पर,
कितनी बार मन होता है,
उस सतह को छु कर आने का,
जहाँ जन्म हुआ, परिभाषित हुई,मै,
अपने ही बनाये दायरों में कैद!
खुद ही हूँ मै सीता और बना ली है,
लक्ष्मण रेखा, क्यूंकि जाना नहीं
है मुझे बनवास, क्यूंकि मै
नहीं देना चाहती अग्निपरीक्षा…..
इन अंतर्द्वंद में, विचलित मै,
चीत्कार नहीं कर सकती, मेरी आवाज़
मेरी प्रतिनिधि नहीं है,
मै नहीं बता सकती ह्रदय की पीड़ा ,
क्यूंकि मै स्त्री हूँ,
कई वेदना, कई विरह ,कई सवाल,अनसुलझे?
अनकहे जवाब, सबकी प्रिय, क्या मेरा अपना अस्तित्व,
देखा है मैंने, कई मोड़ कई चौराहे,
कितने दिन कितनी रातें, और एक सवाल,
सपने देखती आँखें, रहना चाहती हूँ,
उसी दुनिया में , क्यूंकि आँख खुली और
काला अँधेरा , और फिर मैं, निःशब्द,
ध्वस्त हो जाता है पूरा चरित्र, मेरा…….
कैसे कह दूँ मैं संपूर्ण हूँ,
मुझमे बहुत कमियां है, कई पैबंद है……….
मै संपूर्ण नहीं होना चाहती,
डरती हूँ , सम्पूर्णता के बाद के शुन्य से
मै चल दूंगी उस सतह की ओर………
ढूंढ़ लाऊँगी अपने अस्तित्व का सबूत…
अपने लिए, मुझे चलना ही होगा,
मैं पार नहीं कर पाउंगी लक्ष्मण रेखा,
मैं नहीं दे पाऊँगी अग्निपरीक्षा,
मैं सीता नहीं,
मैं स्त्री हूँ,
एक स्त्री मात्र!
चौखट पर चीख, चौराहे पर चीरहरण
सदियों से महिलाओं के साथ जैसा दमन और अत्याचार हुआ है वह अकल्पनीय है.सीता और पारवती की आर में पुरषों की साज़िश अब खुलकर सामने आने लगी है.एस देश में स्त्रियों की दशा बद से बदतर होती जा रही है. यह हमारे व्यवहार में आ गया है की हमने स्त्री दमन को सामाजिक स्वरुप दे दिया है. पुरूषों की भोगवादी मानसिकता स्त्रियों को मुक्त देखना पसंद नहीं कर पाती. लेकिन यह भी सही हैकि इसी भोगवादी मानसिकता ने स्त्रियों के लिए रास्ता तैयार किया है और स्त्रियाँ चौखट से निकलकर चौराहें पर आ गयीं है.पुरुष ने शायद ही कभी इस बात पर ध्यान दिया हो की महिला वैश्याओंकी मंडी क्यूँ अस्तित्व में बनी रही है.लेकिन “मेल स्ट्रिप” का बाज़ार लगता है तो हमारे भौतिक आचरण में सडन आने लगती है.क्यूँ भाई? ऐसा क्यूँ ? क्या स्त्री वैश्या की खोज नहीं कर सकती? देखने सुनने में यह बात भले ही थोड़ी असहज लगे लेकिन यह चेतना के उस धरातल की आजादी है जहाँ सच में बराबरी का बोध होता है.जहाँ स्त्री अपने से अपने बारे में निर्णय लेने के लिया स्वतंत्र है.
यह भी सच है की तथाकथिक आज़ादी का सबसे ज्यादा फ़ायदा बाज़ार उठा रहा है , पुरुष समाज में सदियों से दमित स्त्री देह की लालसा फुटकर बहार निकल रही है. ऐसे में बाज़ार को लगता है की स्त्री देह को जितना बेच सको बेच लो. हमारे आस पास ऐसी घटनाएँ घाट रही है जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते. स्त्री खुले आम अपने देह का पर्दर्शन कर रही है. सुन्दरता का बाजारीकरण हो चूका है.लड़कियां इस पूरी व्यवस्था में यह भूल जाती है की उनका शारीर बाज़ार में रखी कोई वस्तु नहीं है जिसका उद्देश्य किसी और के आनंद और भोगने का माध्यम है.अचानक एक गाना याद आ गया” एक ऊंचा लम्बा कद दूजा सोनी भी तू हद” आगे और भी है. गाने में हीरो कारन बता रहा है की मई क्यूँ तुम पर मरता हूँ. तुम पर मरना की वजह तुम्हारा दिल; दिमाग ,चरित्र नहीं केवल तुम्हारा रूप है. एक ऑब्जेक्ट में तब्दील होती लड़कियां और उपभोक्ता होते पुरुषों की मानसिकता को बनाने में हम सभी का योगदान है.
हम स्त्रियाँ ये नहीं जानती की हम एक व्यवस्था के पंजे में जकड़ी है जो हमे गुलाम करने के नित्य नए तरीके इजाद कर रहा है.जब वे चूल्हे चौखट तक सिमित थी तब भी और अब भी जब वे देहरी के बहार कामयाब होने निकली हैं ,तब भी वे धीमी गति से गुलाम होती जा रही है.जैसा की मधुर भंडारकर की फिल्म फैशन में दिखाया गया है की मॉडल होना एक प्रोफेशन है जिसमे आप केवल एक वस्तु है. एक शारीर जिसे सोचने नहीं दिया जाता जो धीरे धीरे सोचना बंद कर देता है. स्त्री देल aaj उत्पाद में तब्दील होती जा रही है. इस ब्रेन वश से अज अगर नहीं बचा गया तो स्त्री मुक्ति सदियों दूर हो जाएगी.बार्बी और जीरो फिगर को आदर्श मानने वाली स्त्रियाँ अगर चिन्तनशील है, विचारवान है, अपनी अस्मिता के प्रति सचेत हैं , स्वयं को इन्सान से वस्तु में तब्दील होने देना नहीं चाहती तब शायद चिंता का विषय नहीं है ……………पर क्या वाकई ऐसा है? शायद नहीं.
गुरुवार, 3 मार्च 2011
क्या सचिन कुत्ता है???
एक खबर है, चौंकाने वाली है, गुस्साने वाली है…यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस पहलू से इस खबर को पढ़ते और समझते हैं। मुझे तो यह खबर चुभ गई, इसलिए मैं इसका पुरजोर विरोध करता हंू। सोच रहा हंू कि अगर मेरे पास भी एक कुत्ता होता तो मैं उसका नाम किसके नाम पर रखता। आप भी सोचिए कि क्या यह सही है???
दरअसल मामला है क्रिकेट के गॉड कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर से जुड़ा हुआ। हुआ यंू कि एशिया में चल रहे वल्र्ड कप क्रिकेट टूर्नामेंट के दौरान साउथ अफ्रीका के बॉलिंग कोच विंसेंट बन्र्स ने एक बयान देकर हम सब भारतीयों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। उन्होंने कहा कि वह सचिन को सबसे ज्यादा मिस करते हैं…चौंकिए मत..यह हमारा सचिन नहीं बल्कि उनका कुत्ता है। उफ…यह क्या हो रहा है…मेरे क्रिकेट के भगवान के नाम पर ही इस कोच को कुत्ते का नाम सुझाई दिया। अरे अगर रखना ही था तो राजा के नाम पर रखा होता, कलमाडी के नाम पर रखा होता। ऐसे तमाम घोटालेबाज और भ्रष्टाचारी हैं, जिनके नाम पर वह अपने कुत्ते का नाम रख सकते थे, लेकिन…। अब इस खबर का दूसरा पहलू यह है कि एक इंडियन ही बन्र्स को क्यों मिला। अगर रखना ही था तो वह पोंटिंग के नाम पर अपने कुत्ते का नाम रखते या फिर अपने शॉन पोलाक के नाम पर रख लेते। हालांकि बन्र्स ने जब मीडिया की तरेरती आंखे देखी तो उन्होंने बात घुमा दी, बिल्कुल बॉल को स्विंग करने के स्टाइल में। उन्होंने जवाब दिया कि दरअसल वह सचिन के सबसे बड़े फैन हैं, इसलिए अपने कुत्ते का नाम सचिन रखा है। अरे साहब, फैन थे तो अपने बच्चे का नाम सचिन रखते, कुत्ते का क्यों रखा? हम बेचारे, हमारी सरकार भी बेचारी…
हर दिन हम भारतीयों को विदेशियों द्वारा अपमान अब आम हो चला है। कहीं अमेरिका हमारे युवाओं के गले में पट्टे डाल रहा है तो कहीं ऑस्ट्रेलिया में हमारे बेटे सरेआम पीटे जा रहे हैं। सरकार खामोश है…नेता चुपचाप हमारे खजाने को विदेशों में भेजने में व्यस्त हैं, जनता आवाज नहीं उठा रही…कैसे होगा बदलाव? दुनियाभर में भारत के लोकतंत्र को वाहवाही मिलती रही है, हमारे टेलेंट को अमेरिका भी जानता है और चीन भी। इसके बावजूद जिसे जब मौका मिलता है, हमारे नेताजी तक के कपड़े भी उतरवा देता है। आखिर हम कब तक ऐसा ही रुख अख्तियार करते रहेंगे? इन लातों के भूतों को अगर हम बातों से मनाने की कोशिश करते हैं तो यह हमारी सबसे बड़ी मूर्खता है। हमें चाहिए कि हम इस साउथ अफ्रीकन बॉलिंग कोच को जवाब दें ताकि जब वह अपने देश जाए तो उसे यह याद रहे कि हम इंडियंस डॉग नहीं हैं, हम इंसान हैं तो हम हैवानों से निपटना भी जानते हैं। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब एक अंग्रेज यहां आकर हमारे देश की किसी भी हस्ती को अपना फेवरेट बताकर उसके नाम पर अपने कुत्तों, बिल्लियों के नामकरण कर चला जाएगा और हम ऐसे ही मुंह ताकते रह जाएंगे।
हम इंडियन है, हमें इस पर गर्व है…जनहित में प्रचारित…जय हिंद।
निन्दक ‘नियरे’ राखिए
प्रेम कहानियां यूं ही नहीं बनतीं (कोमल )
जब भी प्यार, इश्क की बात होती है तो हम खुद को मजनूं या रांझा का रिश्तेदार समझ लेते हैं. हर किसी की लाइफ में इन प्रेम कहानियों की खास इंपोर्टेंस होती है. किसी ने आपका दर्द पूछा नहीं कि आप तुरंत अपनी प्रेमकथा सुनाने को तैयार हो जाते हैं. हर किसी का अपना-अपना दर्द होता है, लेकिन इस दर्द को बयां करके जो सूकून इंसान को मिलता है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. आज मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. दूसरी सिटी में रहने के कारण मेरा फ्रैंड सर्किल काफी सीमित है. बस यूं ही टहलते हुए मैं एक पार्क तक चली गई. इस पार्क को दून के रिपोटर्स का अड्ढा भी कहा जाता है. यहां पर जर्नलिज्म के कुछ सीनियर्स हमेशा ही मिल जाया करते हैं. यहां पर पहुंची तो एक रीजनल न्यूजपेपर के दो रिपोर्टर यहां पहले से मौजूद थे. आमतौर पर इनसे मैं फील्ड में मिल चुकी हूं, लेकिन बातचीत कम ही होती है. मुझे लगा चलो थोड़ी देर यहीं गपशप कर ली जाए. दोनों जर्नलिस्ट बहुत सीनियर हैं. बात ही बात में चर्चा मेरी शादी तक आ पहुंची. दोनों का कहना था कि ‘कोमल हर काम समय पर होना चाहिए, तुम भी जल्दी शादी कर लो’. मैंने हामी भरी और यूं ही कह दिया कि हां भईया जी जल्द ही शादी कर लूंगी. बात यहां से मुड़ी और प्यार पर आ गई. मैंने उनमें से एक सीनियर से उनके परिवार के बारे में पूछा तो पहले तो वह चुप रहे, लेकिन उनके दूसरे साथी ने कहा कि यह इस बुढ़ापे में भी अपनी लवर का वेट कर रहे हैं. पहले तो मुझे यह मजाक लगा, लेकिन यह मजाक नहीं था. इन सीनियर की उम्र अब चालीस साल क्रास कर चुकी है. उन्होंने बताया कि वह कुमांऊ के एक गांव से बिलांग करते हैं, वहीं पर वह लड़की रहा करती है जिसे उन्होंने प्यार किया. कुमांऊनी ब्राह्म्ण होने के कारण पैरेंट्स ने दूसरी कास्ट की लड़की से शादी करने की इजाजत नहीं दी. बस फिर क्या था मैंने सोच लिया कि अब उसका इंतजार ही करूंगा. मुझे मेरे स्कूटर से बहुत प्यार था और उसकी के सहारे मैं सिटी की गलियां नापा करता था. यह स्कूटर क्योंकि मेरे पापा ने दिया था, इसीलिए मैंने अपने निर्णय के बाद इस स्कूटर को कभी नहीं छुआ. इसके बाद में देहरादून आ गया. कई साल यूं ही बीत गए हैं, लेकिन मैं अकेला ही रहा. उस लड़की को देखे हुए छह साल हो गए हैं, चार साल से उसकी आवाज नहीं सुनी. बावजूद इसके यह रिश्ता इतना गहरा है कि मैं उसकी हर खबर रखता हूं. कोई टेलीफोनिक कम्युनिकेशन नहीं है, लेकिन मुझे पता है कि उसने भी शादी नहीं की. हमेशा चुप रहने वाले इन सीनियर जर्नलिस्ट की बातें सुनकर मैं सोच में पड़ गई कि क्या सचमुच कोई किसी का इतना लंबा इंतजार कर सकता है. बावजूद इसके वह बहुत आशावान हैं और उन्होंने मुझे बताया कि कोमल इस बार मैं जब गांव जाऊंगा तो उससे जरूर मिलूंगा. तुम प्रेयर करना की सब ठीक हो जाए…..
मंजिल मुश्किल तो क्या…धुंधला साहिल तो क्या
मंजिल मुश्किल तो क्या…धुंधला साहिल तो क्या
समाज सुधार का ठेका
ऐसा बिल्कुल मत सोचिए कि यह आपसे बहुत ‘कुछ’ चाहते हैं. आप तो बस इनकी हां में हां मिलाते रहिए, फिर देखिए इनकी भी वाह-वाह और आपकी भी. आप इनकी तारीफ में दो पंक्तियां लिख दें, यह आठ लिखेंगे और (स्व) समाज सुधार की राह में आपको भी अपने साथ ले लेंगे. फिर तो बस दुनिया में दो ही समाज सुधारक रह जाएंगे…एक यह महानुभाव और एक आप. अपने दोहरे चेहरे और डबल स्टैंडर्ड मैंटेलिटी को चालाकी से छिपा जाना कोई इनसे सीखे. मुंह में राम, बगल में छुरी रखे अपने यह (तथाकथित) समाजसुधारक साथी सुधार का नाम लेकर समाज का बैंड बजाने से भी पीछे नहीं हटते. इनका जितना गुणगान करते हुए शब्द खत्म हो जाएंगे, लेकिन समाज सुधारकों और सुधार की संभावनाएं नहीं.