मंगलवार, 20 सितंबर 2011

“इस्लामी आतंकवाद” की फ़र्ज़ी धारणा

Hindi translation of bestseller "Who Killed Karkare?"
Book:
करकरे के हत्यारे कौन ?
भारत में आतंकवाद का असली चेहरा
एस. एम. मुशरिफ़
by S.M. Mushrif
[Former, IG Police, Maharashtra]
368 pages p/b
Price: Rs 250 / US $15 $20
ISBN-10: 81-7221-038-8
ISBN-13: 978-81-7221-038-0
Year: 2010
Publishers: Pharos Media Publishing Pvt Ltd
368 पन्‍नों की यह पुस्तक भारत में “इस्लामी आतंकवाद” की फ़र्ज़ी धारणा को तोड़ती है।

यह उन शक्‍तियों के बारे में पता लगाती है जिनका महाराष्ट्र ए टी एस के प्रमुख हेमंत करकरे ने पर्दाफ़ाश करने की हिम्मत की और आख़िरकार अपने साहस, और सत्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की क़ीमत अपनी जान देकर चुकाई।

एक पुस्तक जो साफ़ तौर पर यह कहती है कि ये “ब्राह्‌मणवादियों” का “ब्राह्‌मणवादी आतंकवाद” है, इस्लामवादियों का “इस्लामी आतंकवाद” नहीं...

See More : http://hbfint.blogspot.com/2011/09/blog-post_689.html

एक स्त्री के बारे में....?

बस यही की सदियों से विवाह नाम के व्यापर से खरीदी हुई वो वस्तु ,जिसे ता उम्र अपनी तमाम
ज़िन्दगी का किस्त धीरे धीरे और भी रिस्तो में बंध कर चुकाना पड़ता है ,
जिसका कुछ ब्याज बिस्तर पर वसूल होता है,,,,,,,,,,
कुछ रसोई में ......आज भी .अधिकांश पुरुषों के लिए नारी को बस यही तक
का उपयोग माना जाता है ..........

सोमवार, 5 सितंबर 2011

“मर्ज़ी का प्यार बनाम मज़बूरी का प्यार

दोस्तों प्यार क्या है ? हरेक प्रेमी और विचारक अपनी २ समझ + रूचि और स्वभाव के अनुसार इसकी अलग -२ व्याख्या करता है ….. लेकिन एक बात तो तय है की हरेक युग में प्यार में स्वार्थीपन और त्याग + बलिदान में संघर्ष चलता रहा है …… युग के प्रभाव के अनुसार ही इसमें स्वार्थ और त्याग तथा बलिदान की मात्रा अलग -२ रही है ……
प्रेम सिर्फ देने तथा त्याग का ही दूसरा नाम है , इस बात को मानने वाले आजकल न के बराबर रह गए है ….. आजकल तो प्यार सिर्फ और सिर्फ पाने का ही नाम रह गया है ….. रूह की गहराइयों से कोसो दूर आकर्षण युक्त सिर्फ सतही प्यार ….. ऐसे प्यार का भूत दिलो दिमाग से बहुत ही जल्दी उतर जाया करता है …… ऐसे भी पति – पत्नी के जोड़ें है जिनकी की सारी की सारी उम्र साथ रहते हुए तो बीत जाती है , दर्जनों बच्चे भी हो जाते है , लेकिन अगर उनसे यह पूछा जाए की उन्होंने अपने –२ जीवनसाथी से क्या वास्तव में प्यार किया ? और अगर किया तो कितना ? …… ज्यादातर का जवाब शायद नहीं में होगा …… जब भीतर में उमंग और चाहत ही नही होगी तो प्यार कहाँ से उपजेगा ?….. हम लोग नियति के बनाए हुए रिश्तों में मजबूरी का फर्ज रूपी प्यार करते नही बल्कि उस मज़बूरी के प्यार को भी अपनी जिंदगी मान कर ढोते रहते है …..
इसका मतलब यह नहीं की मैं इस बात के हक में हूँ की सभी को प्रेम विवाह कर लेना चाहिए …… प्रेम विवाह करने वालो का तो और भी बुरा हाल है …… उनकी सफलता का प्रतिशत तो अरेंज्ड मैरिज वालो की तुलना में कहीं भी नहीं ठहरता …… मेरे कहने का मतलब बस इतना भर है की आप विवाह चाहे प्रेम – विवाह करिए या फिर अपने बड़े बजुर्गो की मर्जी से ….. जिससे भी आपका नाता एक बार जुड़ जाए बस फिर उसी को अपना सब कुछ मान कर उसी में डूबकर अपने तन मन और रूह की गहराइयों से प्यार कीजिये … किसी और से सम्बन्ध रखना तो दूर की बात , किसी गैर के बारे में कोई ख्याल लाना भी आपके लिए पाप होना चाहिए ……..
मेरे कालेज के समय में जो साथी लड़के मुझसे किसी लड़की का पीछा करने और उसका घर देख आने में सहायता मांगते थे तो मैं उनसे पहले उनके इष्टदेव के नाम पर यह वचन ले लेता था की अगर उस लड़की से बात बनी तो फिर वोह शादी भी उसी से करेगा …… मैं यह देख कर हैरान रह जाता था की वोह एक सेकंड से पहले शपथ उठा लेते इश्वर के नाम की ……. वोह ज्यादातर समय मेरे साथ ही गुजारते थे , फिर भी पता नही मन के किसी कोने से यह आवाज आती थी की यह अपने वादे पर पूरा नही उतरेंगे ….. मुझको अचरज होता है की जब मुझको उनको साथी होने पर उन पर पूरा विश्वाश नही था तो आजकल की लड़किया लड़को पर किस बिनाह पर विश्वाश कर लेती है ……
शायद इसके दो ही कारण हो सकते है मेरी नजर में …. पहली बात जो जेहन में आती है की यह सच ही कहा गया है की प्यार अंधा होता है ….. जिसमे पड़कर प्रेमी अपना विवेक और सोचने समझने की शक्ति खो देते है ….. दूसरा कारण यह हो सकता है की वोह कहावत जोकि हम लोग अपने बड़े बजुर्गो से सुनते और किताबों में भी पढ़ते आये है की सुन्दर औरते मुर्ख होती है , उनकी अक्ल घुटनों में या फिर उनकी जुल्फों में निवास करती है ….. और यह बात आप सभी भली न्हंती जानते है की आजकल की छोरियों की जुल्फे रही ही कहाँ ….. तो उनकी उसी जन्मजात कमजोरी का फायदा लम्पट पुरुष अक्सर उठाया करते है , और अपना उल्लू सीधा किया करते है …… इस मामले में तो बेचारी कुदरत भी अपनी हार मान लेती है …… उस पराशक्ति ने नारी को इसी कमजोरी पर काबू पाने के लिए और दुनिया का सामना करने के लिए उसको छठी इंद्री रूपी सजगता से नवाजा है जिसको की आजकल हम सिक्स्थ सैंस के नाम से भी जानते है ……
लेकिन आजकल के जमाने में नारियों का यह गुण दब गया है , मुझको तो यही डर है की कम होते -२ कहीं यह एक दिन बिलकुल ही खत्म ना हो जाए …… चाहे हम कितना भी तरक्की क्यों न कर ले , आदमी कितना भी क्यों न गिर जाए , नारी कितनी भी पतित क्यों न हो जाए , लेकिन फिर भी मेरे मन में यह आस और विश्वाश है की वोह दीन कभी नहीं आएगा , जब नारी प्रकर्ति द्वारा अपने इस गुण रूपी हथियार से वंचित हो जायेगी…

रविवार, 4 सितंबर 2011

शिक्षक दिवस पर एक ख़ास रिपोर्ट ; ब्लॉगर्स मीट वीकली (7) Earn Money online


हाजी अब्दुल रहीम अंसारी साहब
कागज़ी समाजसेवी सबक़ लें ... 

 समाचार पत्रों में आप अक्सर समाजसेवियों के बारे में पढ़ते रहते है. किन्तु जो समाजसेवी समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बनते है उसके पीछे कितनी सतनी सच्चाई होती है. शायद हर पत्रकार जानता है. ऐसे समाजसेवियों को आईना दिखने के लिए हैं.  हाजी अब्दुल रहीम अंसारी, एक ऐसा नाम जो उन लोंगो के लिए के लिए प्रेरणा श्रोत है जो खुद को समाजसेवी कहलाने के लिए परेशान रहते है किन्तु समाजसेवा का कोई कार्य नहीं करते. 

मूलतः संत रविदासनगर भदोही जनपद के काजीपुर मुहल्ले के रहने वाले अब्दुल रहीम अंसारी नगर के अयोध्यापुरी प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कई वर्षो तक  कार्यरत रहे. २००७ में वे इसी विद्यालय से अवकाश प्राप्त किये, दो दिन घर पर रहने के बाद उन्हें एहसास हुआ की वे घर पर खाली नहीं रह सकते. लिहाजा फिर पहुँच गए उसी स्कूल जहाँ बच्चो को पढ़ाते थे, उन्हें देखते ही बच्चे चहक उठे. उन्होंने विद्यालय के प्रधानाचार्य से पढ़ाने की इच्छा जाहिर की और नियमित रूप से विद्यालय आकर पढ़ाने लगे. यही नहीं विद्यालय का लेखा जोखा पहले उन्ही के पास रहता था, दुबारा यह जिम्मेदारी उन्हें फिर सौंप दी गयी.  २००९ में उन्होंने हज भी किया. पांच वक़्त के नमाज़ी अब्दुल रहीम अभी तक नियमित रूप से विद्यालय  आकर बच्चो को शिक्षा देते रहते है. उन्हीं के दिशा निर्देश पर पूरा विद्यालय परिवार चलता है. एक बार विद्यालय के प्रधानाद्यापक और सहायक अध्यापक राजीव श्रीवास्तव ने उन्हें अपने वेतन से कुछ पारिश्रमिक देने की बात कही तो वे  भड़क उठे.  कहा आज भी सरकार उन्हें आधी तनख्वाह देती है. हराम का लेना उन्हें पसंद नहीं जब तक शरीर साथ देगा वे बच्चों को नियमित शिक्षा देंगे. यही नहीं वे होमियोपैथिक के अच्छे जानकर भी है. विद्यालय के बच्चे जब बीमार होते हैं तो वही दवा देते हैं.. यही नहीं जो भी उनके पास इलाज के लिए पहुँचता है. उसे भी दवा देते है. और इस दवा का वे कभी एक पैसा तक नहीं लेते. आज वे अपने मुहल्ले में वे सम्मान की दृष्टि से देखे जाते है.  आज जहा लोग पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है. ऐसे में वे सम्मान जनक पात्र ही नहीं वरन पूरे समाज के लिए प्रेरणास्रोत  है.
सच इंसानियत, समाजसेवा का जज्बा हर इन्सान में होना चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म का हो. ऐसे महान व्यक्तित्व को मैं सलाम करता हूँ. यदि ऐसे लोंगो का अनुसरण लोग करें तो जरा सोचिये समाज का क्या स्वरूप होगा. 

हाजी अब्दुल रहीम साहब के बारे में हमें यह सारी जानकारी हमारे मित्र हरीश सिंह जी ने दी है जो कि ख़ुद भदोही में ही रहते हैं। यह जानकर अच्छा लगता है कि हमारे बीच  अभी ऐसे  लोग मौजूद हैं जो कि अपने फ़र्ज़ पहचानते हैं और उसे अदा करते हैं और यह तो सोने पर सुहागे जैसा सुखद है कि यह सब करने वाला एक मुसलमान है।
हमारी दुआ है कि मुसलमानों को विशेष रूप से हाजी जी के अमल से प्रेरणा मिले और यूं तो वह हरेक के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं ही।
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आज सबसे पहले हाजी अब्दुल रहीम साहब का ही ज़िक्र किया गया है। जिसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं-