गुरुवार, 3 मार्च 2011
क्या सचिन कुत्ता है???
निन्दक ‘नियरे’ राखिए
प्रेम कहानियां यूं ही नहीं बनतीं (कोमल )
जब भी प्यार, इश्क की बात होती है तो हम खुद को मजनूं या रांझा का रिश्तेदार समझ लेते हैं. हर किसी की लाइफ में इन प्रेम कहानियों की खास इंपोर्टेंस होती है. किसी ने आपका दर्द पूछा नहीं कि आप तुरंत अपनी प्रेमकथा सुनाने को तैयार हो जाते हैं. हर किसी का अपना-अपना दर्द होता है, लेकिन इस दर्द को बयां करके जो सूकून इंसान को मिलता है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. आज मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. दूसरी सिटी में रहने के कारण मेरा फ्रैंड सर्किल काफी सीमित है. बस यूं ही टहलते हुए मैं एक पार्क तक चली गई. इस पार्क को दून के रिपोटर्स का अड्ढा भी कहा जाता है. यहां पर जर्नलिज्म के कुछ सीनियर्स हमेशा ही मिल जाया करते हैं. यहां पर पहुंची तो एक रीजनल न्यूजपेपर के दो रिपोर्टर यहां पहले से मौजूद थे. आमतौर पर इनसे मैं फील्ड में मिल चुकी हूं, लेकिन बातचीत कम ही होती है. मुझे लगा चलो थोड़ी देर यहीं गपशप कर ली जाए. दोनों जर्नलिस्ट बहुत सीनियर हैं. बात ही बात में चर्चा मेरी शादी तक आ पहुंची. दोनों का कहना था कि ‘कोमल हर काम समय पर होना चाहिए, तुम भी जल्दी शादी कर लो’. मैंने हामी भरी और यूं ही कह दिया कि हां भईया जी जल्द ही शादी कर लूंगी. बात यहां से मुड़ी और प्यार पर आ गई. मैंने उनमें से एक सीनियर से उनके परिवार के बारे में पूछा तो पहले तो वह चुप रहे, लेकिन उनके दूसरे साथी ने कहा कि यह इस बुढ़ापे में भी अपनी लवर का वेट कर रहे हैं. पहले तो मुझे यह मजाक लगा, लेकिन यह मजाक नहीं था. इन सीनियर की उम्र अब चालीस साल क्रास कर चुकी है. उन्होंने बताया कि वह कुमांऊ के एक गांव से बिलांग करते हैं, वहीं पर वह लड़की रहा करती है जिसे उन्होंने प्यार किया. कुमांऊनी ब्राह्म्ण होने के कारण पैरेंट्स ने दूसरी कास्ट की लड़की से शादी करने की इजाजत नहीं दी. बस फिर क्या था मैंने सोच लिया कि अब उसका इंतजार ही करूंगा. मुझे मेरे स्कूटर से बहुत प्यार था और उसकी के सहारे मैं सिटी की गलियां नापा करता था. यह स्कूटर क्योंकि मेरे पापा ने दिया था, इसीलिए मैंने अपने निर्णय के बाद इस स्कूटर को कभी नहीं छुआ. इसके बाद में देहरादून आ गया. कई साल यूं ही बीत गए हैं, लेकिन मैं अकेला ही रहा. उस लड़की को देखे हुए छह साल हो गए हैं, चार साल से उसकी आवाज नहीं सुनी. बावजूद इसके यह रिश्ता इतना गहरा है कि मैं उसकी हर खबर रखता हूं. कोई टेलीफोनिक कम्युनिकेशन नहीं है, लेकिन मुझे पता है कि उसने भी शादी नहीं की. हमेशा चुप रहने वाले इन सीनियर जर्नलिस्ट की बातें सुनकर मैं सोच में पड़ गई कि क्या सचमुच कोई किसी का इतना लंबा इंतजार कर सकता है. बावजूद इसके वह बहुत आशावान हैं और उन्होंने मुझे बताया कि कोमल इस बार मैं जब गांव जाऊंगा तो उससे जरूर मिलूंगा. तुम प्रेयर करना की सब ठीक हो जाए…..
मंजिल मुश्किल तो क्या…धुंधला साहिल तो क्या
मंजिल मुश्किल तो क्या…धुंधला साहिल तो क्या
समाज सुधार का ठेका
ऐसा बिल्कुल मत सोचिए कि यह आपसे बहुत ‘कुछ’ चाहते हैं. आप तो बस इनकी हां में हां मिलाते रहिए, फिर देखिए इनकी भी वाह-वाह और आपकी भी. आप इनकी तारीफ में दो पंक्तियां लिख दें, यह आठ लिखेंगे और (स्व) समाज सुधार की राह में आपको भी अपने साथ ले लेंगे. फिर तो बस दुनिया में दो ही समाज सुधारक रह जाएंगे…एक यह महानुभाव और एक आप. अपने दोहरे चेहरे और डबल स्टैंडर्ड मैंटेलिटी को चालाकी से छिपा जाना कोई इनसे सीखे. मुंह में राम, बगल में छुरी रखे अपने यह (तथाकथित) समाजसुधारक साथी सुधार का नाम लेकर समाज का बैंड बजाने से भी पीछे नहीं हटते. इनका जितना गुणगान करते हुए शब्द खत्म हो जाएंगे, लेकिन समाज सुधारकों और सुधार की संभावनाएं नहीं.