बुधवार, 21 मार्च 2012

मेरी धड़कन


मेरी धड़कन, मॉं

लौट रही थी खाली घड़ा लेकर
मैं पलट रहा था थी भूगोल के पृष्ट... और
खोज था
देश के मानचित्र पर
नदियों का बहाव
मॉं
सामना कर रही थी भूखमरी से
वे चखना चाहते
अनाज के बदले उसकी देह
मैं उसकी कोख में
तलाश रहा था भट्टी
हथियार बनाने के लिए
मॉं
जर्जर कमरे में , हाथ की फटी साड़ी में
ढ़ॉंप रही थी देह और दुविधा
मैं उसकी कोख में
बुन रही थी वस्त्र आकार के क्षेत्रफल-सा
मॉं
दंगे में भीड़ से घिरी चीख रही है
संभाल नहीं पा रही है अपने कटे हुए पेट को
एक अकेले हाथ से
दूसरा हाथ कटकर दूर जा गिरा है
मैं, गर्भस्थ शिशु
पेट से बाहर टुकड़े-टुकड़े बिखरा हूँ
मैं ठीक उसी समय हलाल हुआ
जब कोख में लिख रहा था धर्म का अर्थ ।
दिनेश पारीक

मंगलवार, 20 मार्च 2012

गीता ने बर्बाद किया भारत को:ओरिसन :

आज सुबह सुबह मैं कुछ खोज रहा था गूगल में की कुछ दिन उपरांत ही माँ दुर्गा के नव रात्रि का आगमन होने वाला है तो कुछ पूजा की विधि अपने देश में किन किन प्रकार से की जाती है ये ही खोज ने का मन बना के गूगल खोला और कुछ लिखा और देखा की नव भारत times के पेपर में २१/१२/२०११ के दिन कोई एक ओरिसन नामक लेखक के विचार गीता के उपर कुछ इस तरह से है मेने ध्यान पूरवक पढ़ा तो पहले तो सोचा की इस लेखक ने या तो गीता को कभी देखा और पढ़ा भी नहीं होगा फिर उन के लेख से आगे बड़ा तो पाया की उस ने पढ़ा तो जरुर है वर्ना उस के पास इतना गीता के विरुद्ध इतने कड़े विचार धरा बनती केसे
पर कुछ बातो का तो समर्थन मेरा दिल भी कर रहा है की
दुर्योधन ने असा क्या पाप और अधर्म किया जिसे से वो अपने भाइयो के हाथो से ही मारा गया उसका ये पाप था क्या की उसे भगवान ने पांडव पुत्र से पहले जन्म ने ही नहीं दिया दुर्योधन को गांधारी के गर्भ में ९ महीनो की जगह ११ महीनो तक रखा ये अन्याय नहीं तो क्या था भगवान का
शायद उसे ये कहानी ही लिखनी थी दुर्योधन जिसने कुछ भी नहीं किया वह अधर्म है ?
दुर्योधन ने ऐसा क्या किया जो अधर्म था

१ पिछले एक हज़ार साल से तो गुलाम हैं,
कोई धर्म वाला कृष्ण अवतार लेने नहीं आया,
अभी तक,
गीता में भगवान् प्राप्ति के साधन हैं,
तो आज तक किसी को गीता से भगवान् क्यूँ नहीं मिला ?

गीता के बाद यहाँ पर किसी ग्रन्थ को टिकने ही नहीं दिया गया, गीता को ही हर चीज़ का हल माना गया की गीता से हर समस्या का हल निकल सकता है, और किसी के ग्रन्थ को जगह ही नहीं मिली, तो बर्बादी का जो नाम है वह गीता के ही नाम है, और अगर आबाद की बात है तो आबादी के लिए किसी ग्रन्थ की जरूरत नहीं है, क्यूंकि फिर आदमी किताबों से नहीं अपने हृदय से जीवन व्यतीत करता है, हृदय की बात को हृदय सुनता, फिर गीता के दिमाग की जरूरत नहीं होती, आबादी के लिए दिमाग की जरूरत नहीं, हृदय की जरूरत है,

दिनेश पारीक

गीता ने बरबाद किया भारत को, भारत में भावनाओं के अथाह समंदर को गीता ने बरबाद कर दिया, लोग ने लोगों पर विश्वास करना छोड़ दिया, और लोग आपस में नातें-रिश्ते भूलकर, जमीन-जायदाद और धन के लिए अपने ही अपनों के गले काटने लगे, क्यूंकि गीता में ऐसा लिखा है, जिसमे इंसानी भावनाओं से ऊपर जमीन-जायदाद और धन-संम्पत्ति को बड़ा माना गया, और उसके पीछे यह मिसाल दी गयी की जो अपना है, वह अगर किसी के पास भी है तो छीन लो, भले ही वह भाई-हो, नातेदार हो, रिश्तेदार हो, उस भावना को दबा दो, और जमीन और धन के लिए अपने से बड़ों से भी लड़ पड़ो, यह गीता ने सिखाया, जिससे भारत बरबाद हो गया, और भारत में जमीन-जायदाद और धन संम्पति को ज्यादा महत्त्व दिया गया, जबकि भावनाओं और हृदय की बातों को कमजोरी समझा गया, और इसका फायदा उठाया गया, तो इस तरह तो गीता ने एक तरफ कहाँ की जो तुम्हारा है अर्जुन वह किसी भी प्रकार लड़कर छीन लो, फिर दूसरी तरफ गीता ने कहा की तुम क्या लाये तो जो तुम्हारा है, तुम क्या ले जाओगे, इस तरह की विरोधाभाषी वक्तव्य ने भारत के लोगों को भ्रमित कर दिया, तो जो लोग, ताकतवर थे, चालाक थे, उन्होंने दूसरों की भावनाओं का फायदा उठाकर, उन्हें उसी में उलझाये रखा और अपने पास धन-दौलत और जमीन-जायदाद अपने पास रखी, बस यही पारी पाटि भारत में चलती रही, और उसने कमजोर को वैरागी बना दिया, और ताकतवर को अय्याश बना दिया, कमजोर होकर वह वैराग का बाना ओढ़ लिया की अब उसे तो यह जामीन मिलने से रही तो उसने कहाँ की संसार मिथ्या है, और जो ताकतवर था उसने अय्याशी अपना ली | इस तरह से गीता ने पूरे भारत को दो भागों में बाँट दिया, एक जो उस जमीन-जायदाद के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे, उसके लिए किसी के साथ भी लड़ सकते थे, कोई भी पैंतरा अपना सकते थे, और अपने हाथ में दौलत काबू में रखते थे, और दूसरे वो जों भावनाओं के आगे जमीन-जायदाद को भी ठोकर मार देते थे, और अपने ईमान को कभी गन्दा नहीं करते थे, और अपने नाते-रिश्तों और बड़ों का सम्मान करते थे, आज भी भारत इसी ढर्रे पर चल रहा है, जों लोग पैसे वाले होते हैं वह भावुक नहीं होते हैं, और जों गरीब होते हैं वह भावुक होते हैं, और पैसे वाले किसी के सामने दिखावा तो करते हैं की हम सम्मान करते हैं, पर पीठ पीछे छुरा भी घोंप देते हैं, और उनकी भावना झूठी होती है, उस भावना में भी वह उससे गरीब के पास जों होता है, वह हथियाना चाहते हैं, और उसे और गरीब ही रहने देना चाहते हैं, बात तो बड़ी-बड़ी करते हैं की सब माया है, पर भारत वाले जितनी माया इक्कठी करते हैं उतना संसार का कोई आदमी नहीं करता है |


तो आज भी यह गीता किसी भी नाते और रिश्ते को तोड़कर जमीन और जायदाद को महत्त्व देने को कहती है, और गीता के बल पर वह किसी की परवाह नहीं करता है, और बड़े-बूढें की भावनाओं को देखता तक नहीं है, उसके लिए अपना अहंकार ही सबसे बड़ा होता है, और उसका अहंकार किसी भी प्रकार से जमीन और जायदाद हथियाना चाहता है | चाहे उसके लिए किसी को भी मारना पड़े, चाहे वह कोई भी हो, नाते में रिश्ते में।
ओरिसन :
इस लेख को सिर्फ कॉपी किया गह है नवभारत times न्यूज़ पेपर से ये विचार एक ओरिसन नामक लेखक के है

गुरुवार, 15 मार्च 2012

माँ की वजह से ही है आपका वजूद

एक विधवा माँ ने अपने बेटे को बहुत मुसीबतें उठाकर पाला। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बड़ा होने पर बेटा एक लड़की को दिल दे बैठा। लाख कोशिशों के बावजूद वह लड़की का दिल नहीं जीत पाया।

एक दिन वह लड़की से बोला- यदि तुम मुझसे शादी नहीं करोगी तो मैं अपनी जान दे दूँगा। उसकी हरकतों से परेशान हो चुकी लड़की ने सोचा कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे लड़के से पीछा छूट जाए। वह बोली- मैं तुम्हारे प्यार की परीक्षा लेना चाहती हूँ। बोलो तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो? लड़का बोला- बताओ, मुझे अपने प्यार को साबित करने के लिए क्या करना होगा?

लड़की बोली- क्या तुम मुझे अपनी माँ का दिल लाकर दे सकते हो? लड़का सोच में पड़ गया, लेकिन उस पर तो लड़की को पाने का जुनून सवार था। वह बिना कुछ कहे वहाँ से चल दिया। लड़की खुश हो गई कि अब शायद वह उसका पीछा नहीं करेगा। उधर लड़का घर पहुँचा तो उसने देखा कि उसकी माँ सो रही है। उसने माँ की हत्या कर उसका दिल निकाल लिया और उसे कपड़े में छुपाकर लड़की के घर की तरफ चल पड़ा।
एक विधवा माँ ने अपने बेटे को बहुत मुसीबतें उठाकर पाला। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बड़ा होने पर बेटा एक लड़की को दिल दे बैठा। लाख कोशिशों के बावजूद वह लड़की का दिल नहीं जीत पाया।


रास्ते में अँधेरा होने के कारण ठोकर खाकर वह जमीन पर गिर पड़ा और उसकी माँ का दिल उसके हाथ से छिटककर दूर जा गिरा। गिरने पर वह कराहा। तभी माँ के दिल से आवाज आई- बेटा, तुझे चोट तो नहीं लगी? लेकिन इस बात का भी लड़के पर कोई असर नहीं हुआ और वह माँ का दिल लेकर लड़की के घर पहुँच गया। लड़के को अपनी माँ के दिल के साथ आया देख लड़की हतप्रभ रह गई।

उसे बिलकुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि एक बेटा इतना निर्दयी भी हो सकता है। उसे लड़के पर बहुत गुस्सा आया और वह बोली- जो व्यक्ति एक लड़की की खातिर अपनी माँ के निःस्वार्थ प्यार को भूलकर उसका दिल निकाल सकता है, वह किसी दूसरे से क्या प्रेम करेगा।

दोस्तो, यह कहानी भले ही आपको अविश्वसनीय लगे, लेकिन यह सही है कि दुनिया में एक माँ ही होती है, जो खुद लाख दुःख उठा ले, लेकिन अपने बच्चे की छोटी-सी तकलीफ भी सह नहीं पाती। माँ तो इंसान को खुदा से मिली अनुपम सौगात है। वह जननी है। वही सृष्टिकर्ता है, क्योंकि उसके बिना तो सृष्टि आगे बढ़ ही नहीं सकती।
एक विधवा माँ ने अपने बेटे को बहुत मुसीबतें उठाकर पाला। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बड़ा होने पर बेटा एक लड़की को दिल दे बैठा। लाख कोशिशों के बावजूद वह लड़की का दिल नहीं जीत पाया।

एक दिन वह लड़की से बोला- यदि तुम मुझसे शादी नहीं करोगी तो मैं अपनी जान दे दूँगा। उसकी हरकतों से परेशान हो चुकी लड़की ने सोचा कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे लड़के से पीछा छूट जाए। वह बोली- मैं तुम्हारे प्यार की परीक्षा लेना चाहती हूँ। बोलो तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो? लड़का बोला- बताओ, मुझे अपने प्यार को साबित करने के लिए क्या करना होगा?

लड़की बोली- क्या तुम मुझे अपनी माँ का दिल लाकर दे सकते हो? लड़का सोच में पड़ गया, लेकिन उस पर तो लड़की को पाने का जुनून सवार था। वह बिना कुछ कहे वहाँ से चल दिया। लड़की खुश हो गई कि अब शायद वह उसका पीछा नहीं करेगा। उधर लड़का घर पहुँचा तो उसने देखा कि उसकी माँ सो रही है। उसने माँ की हत्या कर उसका दिल निकाल लिया और उसे कपड़े में छुपाकर लड़की के घर की तरफ चल पड़ा।
एक विधवा माँ ने अपने बेटे को बहुत मुसीबतें उठाकर पाला। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बड़ा होने पर बेटा एक लड़की को दिल दे बैठा। लाख कोशिशों के बावजूद वह लड़की का दिल नहीं जीत पाया।


रास्ते में अँधेरा होने के कारण ठोकर खाकर वह जमीन पर गिर पड़ा और उसकी माँ का दिल उसके हाथ से छिटककर दूर जा गिरा। गिरने पर वह कराहा। तभी माँ के दिल से आवाज आई- बेटा, तुझे चोट तो नहीं लगी? लेकिन इस बात का भी लड़के पर कोई असर नहीं हुआ और वह माँ का दिल लेकर लड़की के घर पहुँच गया। लड़के को अपनी माँ के दिल के साथ आया देख लड़की हतप्रभ रह गई।

उसे बिलकुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि एक बेटा इतना निर्दयी भी हो सकता है। उसे लड़के पर बहुत गुस्सा आया और वह बोली- जो व्यक्ति एक लड़की की खातिर अपनी माँ के निःस्वार्थ प्यार को भूलकर उसका दिल निकाल सकता है, वह किसी दूसरे से क्या प्रेम करेगा।

दोस्तो, यह कहानी भले ही आपको अविश्वसनीय लगे, लेकिन यह सही है कि दुनिया में एक माँ ही होती है, जो खुद लाख दुःख उठा ले, लेकिन अपने बच्चे की छोटी-सी तकलीफ भी सह नहीं पाती। माँ तो इंसान को खुदा से मिली अनुपम सौगात है। वह जननी है। वही सृष्टिकर्ता है, क्योंकि उसके बिना तो सृष्टि आगे बढ़ ही नहीं सकती।

सोमवार, 12 मार्च 2012

सोमवार, 5 मार्च 2012

मैं नारी हूँ



मैं साकार कल्पना हूँ
मैं जीवंत प्रतिमा हूँ
मैं अखंड अविनाशी शक्तिस्वरूपा हूँ

मैं जननी हूँ,श्रष्टि का आरम्भ है मुझसे
मैं अलंकार हूँ,साहित्य सुसज्जित है मुझसे
मैं अलौकिक उपमा हूँ
मैं भक्ति हूँ,आराधना हूँ
मैं शाश्वत,सत्य और संवेदना हूँ

मैं निराकार हूँ,जीवन का आकार है मुझसे
मैं प्राण हूँ,सृजन का आधार है मुझसे
मैं नीति की संज्ञा हूँ
मैं उन्मुक्त आकांक्षा हूँ
मैं मनोज्ञा मंदाकिनी मधुरिमा हूँ

मैं अनर्थ को अर्थ देती परिकल्पना हूँ
मैं असत्य अधर्म अन्धकार की आलोचना हूँ
मैं अनंत आकाश की अभिव्यक्ति हूँ
मैं सहनशील हूँ समर्थ हूँ,मैं शक्ति हूँ

मेरा कोई रूप नहीं दूसरा
मैं स्वयं का प्रतिबिम्ब हूँ
मेरा कोई अर्थ नही दूसरा
मैं शब्द मुक्त हूँ मैं पूर्ण हूँ
मैं नारी हूँ

शनिवार, 3 मार्च 2012

मेरी ब्रिज भूमि की होली




























जय श्री कृष्णा
फिर से दो दिन बचे है होली के फिर वही जाना है श्री कृष्ण के दरबार मे मा को फिर फोन पे दीवाली पे आने की दिलषा दे दी वही प्रेम रश मे डूबने जा रहा हू वाहा के तो वातावरण मे ही १ प्रेम रस है वाहा की भूमि पे पेर रखते ही १ अनूठी खुशी ओर मन शीतल होने का अहसास होने लगता है फिर वही जाना है इस बार भी

ये मेरी ब्रिज भूमि की दूसरी यात्रा थी ये बात गुरुवार १७/०३/२०१० होली के दो दिन पहले की है | मेने तो सोचा भी नहीं था ! की मुझे अचानक होली पे घर जाने के बदले ब्रिज की पवित्र भूमि पे जाना है शायद उपर वाले के खाते में सब कुछ पहले से ही तय था तो मैं कों न था ! जो उपर वाले का प्रोग्राम बदल देता !!!!! मुझे लग-भग ४ साल होगये कोई होली दिवाली मानने मे घर जा नही पाता हर होली दीवाली पे मे कही पे भी हो रामेश्वर, वृंदावन , साई नाथ, श्याम दरबार सालसर असी असे ही स्थानो पे जाता रहता हू पर जो भी हो हर समय वो कोई न कोई बहाना करके मुझे अपने पास बुला ही लेता है तभी शायद मैं भी आजकल कुछ जयादा ही भरोसा करने लगा हु मुझे भी घर जाना चाहिए ओर ये अपनी जगह सही है माँ तो वेसे भ नाराज़ चल रही है ६ महीनो से घर जो नही गया हू मेने २-४ लोगो को तो छुटी देदी और कुछ को ताल मटोल कर रहा था ! सब को समझा रहा था जो कुछ करना है दिली मे करो मस्ती या कुछ धमाल करना है यही पे करेंगे क्यूं की मुझे भी अपना दिल जो यही पे लगाना था पर कुछ देर अपने चेमर में बिल वगेर को देख रहा था की | फिर अचानक पिछले साल की बातो ने दिमाग पे घेरा ड़ाल दिया पता ही नहीं चला की कब सायं के ५.३० बज चुके है ?फिर मैं अपने दफ्तर से निकल के अपने कैंटीन में आया और अपने कुछ राजस्थानी भाइयो को बुलाया और पिछले साल की होली के बारे में बताया तो हम लोग ८-९ आदमी होली मानाने के लिए वृन्दावन मथुरा गोकुल , नन्द गोवं बृज भूमि जाने के लिए राज़ी होगये मेरी दूसरी यात्रा थी

कैमरे में कैद होली