उस दुकान से बाहर निकलते वक्त बाहर सामने एक जुते की दुकान दिखी. वहां बोर्ड लगा था "एक के उपर एक फ्री' . अब दायें जुते के उपर बाया जूता फ्री ... या फिर बाये जूते के उपर दाया जुता फ्रि... या फिर एक पेअर के साथ दूसरी पेअर फ्री...ये उस दुकान मालिक को पुछने की मेरी प्रबल इच्छा हूई. लेकिन अभी अभी आये ताजा अनुभवसे मेरी उस दुकान में जानेकी हिम्मत नही बनी.
रस्तेसे जाते हूए अपनी झेंप छीपाने के लिये उस छाते को कभी जेबमें तो कभी कॉलर मे लटकाने की कोशीश करने लगा. गले मे लटकाते हूए एक विचार मेरे मन मे आया ... अरे यह तो जबरदस्ती गले पडा हूवा छाता है इसको और गले मे लटकाने की क्या जरुरत.
अनायास ही एक पतली गलीमें मेरा ध्यान गया. वहां कोने मे उस दिन मिला अंधा, लंगडा भिखारी मस्त खडा होकर सिगार पीता हूवा दिखाई दिया. इसका मतलब वह लंगडा नही था और शायद अंधा भी नही था. मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा था. उसने हम सबको उल्लू बनाया था. उल्लू सी सुरत लेकर मै थोडा और आगे निकल गया . वहां रस्तेके किनारे लोगोंकी भीड जमा हूई थी. कभी कभी भीड ऐसे ही जमा हो जाती है. दो लोग जमा हो जाते है. वे दो क्यों जमा हूए ये देखने के लिये और तिन जाते है...और तिन के पिछे और छे... ऐसे मै भी भीड मे घुस गया... देखता हू तो उस दिन मिला दुसरा भिखारी जो "मेरी मां बिमार है' कहकर भिख मांग रहा था .. वह किसी वृध्द महिला का सर अपने गोद में लेकर जोर जोर से रो रहा था. वह महिला मर गई थी ... शायद उसकी मां थी. उस दिन कितनी विवशता से पैसे मांग रहा था बेचारा. उसको कोई समझ नही पाया था ... या फिर वह अपनी जरुरत की ठीक ढंग से मार्केटिंग नही कर पाया था.
इतने मे वह दुसरा झुठा लंगडा अंधा भिखारी लंगडता हूवा वहां आया. उसकी मौके की नजाकत को पहचानने की काबीलीयत तो देखो. झट से उसने एक कॅप उलटी की और लडखडाता हूवा " उसकी मां को जलाने को पैसे दो' करके भीख मांगने लगा ... ही इज अ परफेक्ट मार्केटींग मॅन ... यहां अगर कोई मार्केटिंग के लोग बैठे हो तो माफ कर देना भाई.
मै और मेरी बीवी मार्केटिंग निपटाकर घर लौट रहे थे. उस भिखारी की मां को मरे हूए 7 - 8 दिन हो गए होंगे. तो भी वह चित्र मेरी आंखो के सामनेसे हटते नही हट रहा था. उस झुठे लंगडे अंधे भिखारी ने सबको बेवकुफ बनाया था. जिसे असली जरुरत उसको किसीने भी पैसे नही दिए थे. आज इस भडकीले ऍड्वर्टाइज, भडकिले मार्केटिंग के युग में क्या सचमुछ अपनी समझ खत्म होती जा रही है. मै अपनी सोच में डूबा चला जा रहा था.
" वह कॉफी सेट बहुत ही सुंदर था है न?' मेरी बिवीने मेरी विचारोंकी श्रुंखला को तोडा.
मैभी अपने आप को नॉर्मल बतानेके प्रयास मे मजाक पर उतर आया.
" हां बहुत ही सुंदर था ... लेकिन एक चीज उस कॉफी सेट की सुंदरता बिगाड रही थी...' मैने कहा.
" कौनसी?' मेरी बिवीने पुछा.
" उसपर लगा हुवा प्राईज टॅग' मैने कहा.
थोडी देर अंधेरे मे हम चूपचाप ही चलते रहे.
" उधर देखो ... उधर गलीमें' मेरी पत्नी एक गली की ओर निर्देश करते हूवे बोली.
मैने उत्सुकतावश उस गली मे देखा. जहां उस दिन वह झूठा लंगडा भिखारी मजेसे सिगार पी रहा था. आज वहां दो लोग थे. वह झूठा लंगडा अंधा भिखारी और दूसरा जिसकी मां मरी थी वह. दोनो मजे से मस्त होकर सिगार पी रहे थे. जिसकी मां मर गई थी वह एक हाथ से सिगार पी रहा था और दूसरे हाथ से किसी राजा की तरह पैसे गीन रहा था
.... शायद वह मार्केटिंग सीख गया था.
--- The end---
-- कृपया इस कहानी के बारेमे आपनी प्रतिक्रिया लिखे --
1 टिप्पणी:
Wow… This is great! I can say that this is the first time I visited the site and I found out that this blog is interesting to read. Thanks for this awesome monitor.
एक टिप्पणी भेजें