बुधवार, 19 अक्टूबर 2011
काशी कथा वाया मोहल्ला अस्सी
गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011
माँ , तुमने महिषासुर का संहार किया
नौ रूपों में अपने
नारी की शक्ति को समाहित किया !
अल्प बुध्धि - सी काया दी
वक्त की मांग पर तेज़
जब-जब अत्याचार बढ़ा
तुमने काया कल्प किया !
रक्त में ज्वाला
आँख में अग्नि
मस्तिष्क में त्रिशूल बन धधकी !
कमज़ोर नहीं है नारी
जाने है दुनिया सारी
माँ तेरी कृपा है हर उस घर में
जहाँ जन्म ले नारी !!!
किया किसने अविष्कार धागे के साथ
तेरा रिश्ता? तुम पहले पहल
कैसी थी और अब से कितनी अलग?
कोई औरत सी रही होगी अलाव के पास चमड़े और पत्ते
इसके पहले कि हो बंर्फबारी
हो जाए हालत बद से बदतर
मर्द जबकि लड़ते थे
पत्थरों के हथियारों से जंगलों की लड़ाई
एक औरत
लड़ रही थी सुई से
बुरे मौसमों के विरुध्द
उस औरत को भी
नहीं मालूम
कि सी दी थी
उसने कितनी बड़ी
आदिम सभ्यता की
चादर
वह इसलिए
नहीं सोई
कि उसके मर्द
बच्चों के लिए
गुफा में
सिमटी रहे
थोड़ी-सी गर्मी
नींदों में भी
सुनाई न पड़े
दु:खों की गुर्राहट
फिर पीले पत्ते उड़े
जंगल
अग्रि-पर्वतों में तब्दील हुए पत्ते झुलसे
स्वप् राख हुए तब भी औरत
बना रही थी एक नक्षत्राकार तंबू
बिन थके
बिन थके
आखिरकार उसने बुन ही डाला
संसार का ताना-बाना टांक दिए
आकाश में खरबों सलमे-सितारे
उससे इसको जोड़ा इससे उसको
और पूरी पृथ्वी को ही
उसने बना डाला उष्णऊनों का
धड़कता हुआ गोला शुरु से
जो पास रही औरत के वह थी यही एक
नन्हीं सुई ऊंगलियों के
पोरों में असंख्य बार चुभी, छलकी आंखें
पर न औरत रुकी न ही पृथ्वी...
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मेरी बिटिया
पावन है घर-आँगन,
उसकी चंचल चितवन
मोह लेती हम सबका मन,
वो रूठती
तो रुक जाते हैं
घर के काम सभी,
वो हँसती
हरसिंगार के फूल,
महक उठता है
घर का कोना-कोना,
जाने कैसे हैं वे लोग
जो बेटियों को
जन्मने ही नहीं देते
हम तो सह नहीं सकते
अपनी बेटी का
एक पल भी घर में न होना .
बुधवार, 5 अक्टूबर 2011
एक स्त्री के बारे में....?
क्या तुम जानते हो
पुरुष से भिन्न एक स्त्री का एकांत?
घर प्रेम और जाति से अलग
एक स्त्री को उसकी अपनी
जमीन के बारे में बता सकते हो तुम?
बता सकते हो
सदियों से अपना घर तलाशती
एक बेचैन स्त्री को उसके घर का पता?
क्या तुम जानते हो
अपनी कल्पना में किस तरह एक ही समय में
स्वयं को स्थापित और निर्वासित करती है एक स्त्री?
सपनों में भागती एक स्त्री का पीछा करते
कभी देखा है तुमने उसे
रिश्तों के कुरुक्षेत्र में अपने-आपसे लड़ते?
तन के भूगोल से परे
एक स्त्री के मन की गाँठ खोलकर
कभी पढ़ा है तुमने उसके भीतर का खेलता इतिहास?
पढ़ा है कभी उसकी चुप्पी की दहलीज पर बैठ
शब्दों की प्रतीक्षा में उसके चेहरे को?
उसके अंदर वंशबीज बोते
क्या तुमने कभी महसूसा है
उसकी फैलती जड़ों को अपने भीतर?
क्या तुम जानते हो
एक स्त्री के समस्त रिश्ते का व्याकरण?
बता सकते हो तुम
एक स्त्री को स्त्री-दृष्टि से देखते
उसके स्त्रीत्व की परिभाषा?
अगर नहीं!
तो फिर क्या जानते हो तुम
रसोई और बिस्तर के गणित से परे
एक स्त्री के बारे में....?
मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011
मेरी कविताओं का संग्रह: ब्लॉग पे सेक्स की जानकारी नहीं बल्कि सेक्स केस कि...
प्रेम कहानियां यूं ही नहीं बनतीं (कोमल )
जब भी प्यार, इश्क की बात होती है तो हम खुद को मजनूं या रांझा का रिश्तेदार समझ लेते हैं. हर किसी की लाइफ में इन प्रेम कहानियों की खास इंपोर्टेंस होती है. किसी ने आपका दर्द पूछा नहीं कि आप तुरंत अपनी प्रेमकथा सुनाने को तैयार हो जाते हैं. हर किसी का अपना-अपना दर्द होता है, लेकिन इस दर्द को बयां करके जो सूकून इंसान को मिलता है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. आज मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. दूसरी सिटी में रहने के कारण मेरा फ्रैंड सर्किल काफी सीमित है. बस यूं ही टहलते हुए मैं एक पार्क तक चली गई. इस पार्क को दून के रिपोटर्स का अड्ढा भी कहा जाता है. यहां पर जर्नलिज्म के कुछ सीनियर्स हमेशा ही मिल जाया करते हैं. यहां पर पहुंची तो एक रीजनल न्यूजपेपर के दो रिपोर्टर यहां पहले से मौजूद थे. आमतौर पर इनसे मैं फील्ड में मिल चुकी हूं, लेकिन बातचीत कम ही होती है. मुझे लगा चलो थोड़ी देर यहीं गपशप कर ली जाए. दोनों जर्नलिस्ट बहुत सीनियर हैं. बात ही बात में चर्चा मेरी शादी तक आ पहुंची. दोनों का कहना था कि ‘कोमल हर काम समय पर होना चाहिए, तुम भी जल्दी शादी कर लो’. मैंने हामी भरी और यूं ही कह दिया कि हां भईया जी जल्द ही शादी कर लूंगी. बात यहां से मुड़ी और प्यार पर आ गई. मैंने उनमें से एक सीनियर से उनके परिवार के बारे में पूछा तो पहले तो वह चुप रहे, लेकिन उनके दूसरे साथी ने कहा कि यह इस बुढ़ापे में भी अपनी लवर का वेट कर रहे हैं. पहले तो मुझे यह मजाक लगा, लेकिन यह मजाक नहीं था. इन सीनियर की उम्र अब चालीस साल क्रास कर चुकी है. उन्होंने बताया कि वह कुमांऊ के एक गांव से बिलांग करते हैं, वहीं पर वह लड़की रहा करती है जिसे उन्होंने प्यार किया. कुमांऊनी ब्राह्म्ण होने के कारण पैरेंट्स ने दूसरी कास्ट की लड़की से शादी करने की इजाजत नहीं दी. बस फिर क्या था मैंने सोच लिया कि अब उसका इंतजार ही करूंगा. मुझे मेरे स्कूटर से बहुत प्यार था और उसकी के सहारे मैं सिटी की गलियां नापा करता था. यह स्कूटर क्योंकि मेरे पापा ने दिया था, इसीलिए मैंने अपने निर्णय के बाद इस स्कूटर को कभी नहीं छुआ. इसके बाद में देहरादून आ गया. कई साल यूं ही बीत गए हैं, लेकिन मैं अकेला ही रहा. उस लड़की को देखे हुए छह साल हो गए हैं, चार साल से उसकी आवाज नहीं सुनी. बावजूद इसके यह रिश्ता इतना गहरा है कि मैं उसकी हर खबर रखता हूं. कोई टेलीफोनिक कम्युनिकेशन नहीं है, लेकिन मुझे पता है कि उसने भी शादी नहीं की. हमेशा चुप रहने वाले इन सीनियर जर्नलिस्ट की बातें सुनकर मैं सोच में पड़ गई कि क्या सचमुच कोई किसी का इतना लंबा इंतजार कर सकता है. बावजूद इसके वह बहुत आशावान हैं और उन्होंने मुझे बताया कि कोमल इस बार मैं जब गांव जाऊंगा तो उससे जरूर मिलूंगा. तुम प्रेयर करना की सब ठीक हो जाए…..