मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

नारी किसी से न हारी

नारी किसी से न हारी 

Pariwar Special articleईश्वर की रची सर्वाधिक सुंदर कृति है 'स्त्री'। प्रकृति ने उसे कोमल अवश्य बनाया है , पर उसने  परंपराओं से बाहर  निकलकर मील के पत्थर कायम किए हैं। लेकिन अपनी खास पहचान बनाने के बाद भी कदम-कदम पर उसके लिए चुनौतियां हैं। कभी वह इनसे उबरकर पंख लगाकर उड़ती है तो कभी संघर्ष में उलझ जाती है। आइए, उन्हीं से जानते हैं कि मुश्किलों से भरा यह सफर उन्होंने कैसे तय किया।

पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में सामंजस्य
एक कामकाजी महिला के नजरिए से मेरा मानना है औरतों के सामने सबसे बड़ी चुनौती  अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में बैलेंस बनाकर चलना है। अकेली औरत घर को संभालें या ऑफिस को। ऎसे में प्राथमिकताएं तय करना मुश्किल हो जाता है। महंगाई के मौजूदा दौर में घर-गृहस्थी को चलाने के लिए पति-पत्नी दोनों का कमाना जरूरी हो गया है। महिलाएं भाग्यशाली हैं कि कई काम जैसे टीचर, रिसेपशनिस्ट आदि के लिए उन्हें उपयुक्त माना जाता है पर चूंकि पुरूषों की भांति उनकी जिम्मेदारी केवल दफ्तर तक सीमित नहीं है इसीलिए योग्य होते हुए भी वे कॅ रियर के क्षेत्र मे दोहरी जिम्मेदारी के चलते पिछड़ जाती हैं। घर और बाहर के काम में सामंजस्य बैठाना ही बहुत बड़ी चुनौती है।      

अमरप्रीत सब्बरवाल
नेशनल ट्रेनर

खूबसूरती है पैमाना
स्त्री को हमेशा सौंदर्य के मापदंडों पर तोला जाता है। वह कितनी भी अक्लमंद या टैलंटेड क्यों न हो, पुरूष उसके दैहिक सौंदर्य से ही उसे परखते हैं। एक लड़की का खूबसूरत होना उसके विवाह की पक्की गारंटी समझा जाता है। लड़का चाहे कैसा भी हो, पर पत्नी उसे सुंदर ही चाहिए। ऎसे में कितनी लड़कियों के ब्याह नहीं होते या उनमें से ज्यादातर मन मे कंुठाएं पाल लेती हैं या हीनभावना से ग्रसित हो जाती हैं। जबकि बेहद खूबसूरत çस्त्रयों के पति अक्सर असुरक्षित महसूस करते है,ं आत्मकुंठित हो जाते हैं। कार्यस्थलों पर, जहां मापदंड आकर्षक व्यक्तित्व का होता है, वहां अक्सर छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न, अनैतिक संबंध भी इसी मनोदशा के परिचायक हंै। 


महंगाई डायन खाए जात है
एक महिला के समक्ष आज सबसे 
बड़ी चुनौती घर का खर्च चलाने की है। बढ़ती महंगाई ने मध्यमवर्गीय परिवारों की कमर तोड़ कर रख दी है। महीने के आखिर तक आते-आते तो एक-एक रूपया सोच समझकर खर्च करना पड़ता है। महीने के आखिरी दिन इसी जद्दोजहद में गुजर जाते हैं कि सीमित आय में घर का खर्च कैसे चलाएं। जरूरतें तो दिन-ब-दिन बढ़ती ही हैं पर कीमतों में इजाफ ा होने से बजट गड़बड़ा रहा है। लिविंग स्टैंडर्ड मेनटेन करना मध्यम वर्ग के लिए मुश्किल हो 
गया है।

शिवांगी जैन
गृहिणी

एक परिघि है
मेरा मानना है कि एक औरत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है अपना कॅरियर बनाना। कॅरियर के लिहाज से आज भी महिला के पास बहुत सीमित विकल्प हैं। कामकाज के सिलसिले में कई बार घर से बाहर आने-जाने और रहने वाली लड़कियों के चरित्र पर उंगली उठाई जाती है। चूंकि स्त्री हर कहीं रह नहीं सकती, जा नहीं सकती, ठहर नहीं सकती, ये सीमाएं उसे कमजोर बना देती हैं और वो अपनी काबिलियत सिद्ध नहीं कर पाती। जब वह पुरूष प्रधान समाज के मापदंडों पर खरा उतरने का प्रयास करती है तो उसे कई समझौतेे करने पड़ते हैं। बराबरी का हक देना तो दूर, समाज के कर्णधार लोग उसे हर क्षेत्र में दबाना चाहते हैं

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

We should be painstaking and fussy in all the intelligence we give. We should be extraordinarily careful in giving guidance that we would not about of following ourselves. Most of all, we ought to refrain from giving advisor which we dont tag along when it damages those who woo assume us at our word.