अँधेरे का जश्न मनाएँ क्या
उजालों में मिल जाएँ क्या
अनगिनत पेड़ कट रहे हैं
कहीं एक पौधा लगाएं क्या
आज बेचना है ज़मीर हमें
तो खादी खरीद लाएं क्या
बामुश्किल है पीने को पानी
धोएँ तो बताओ नहाएं क्या
बहु के गर्भ में बेटी है आई
पेट पर छुरी चलवायें क्या
बेबस हैं बिकती मजबूरियाँ
भूखे बदन ज़हर खाएं क्या
अंधा है क़ानून परख लिया
कोई तिजोरी लूट लाएं क्या
रोने को रो लिए बहुत हम
पल दो पल मुस्कराएं क्या
यारों ने दिल की लगी दी है
यारों से दिल लगाएं क्या
सायों का क़द नापेगा कौन
हम भी घट-बढ़ जाएँ क्या
चुप की बात समझ आलम
और हम हाल सुनाएँ क्या
7 टिप्पणियां:
एक साथ कई मुद्दों पर कटाक्ष करती शानदार रचना ।
शब्दों के संयोजन के द्वारा बड़ा ही अच्छा कटाछ किया है बहूत खूब
अच्छा कटाछ सशक्त कविता।
आज बेचना है ज़मीर हमें
तो खादी खरीद लाएं क्या
.....इन पंक्तियों का सच ..बहुत ही गहरे उतर गया.
sarthak kataksh
बहुत सी बातों को समेटे ... अच्छी गजल ....
very nice write dinesh...to gud and true
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