सदियों से इस जगत में
पुनीता , पूजिता औ' तिरस्कृता
बनी और सब शिरोधार्य किया
कभी उन्हें दी सीख
औ' कभी मौत भी टारी हूँ ,
हाँ मैं नारी हूँ.
सदियाँ गुजरी ,
बहुरूप मिले
विदुषी भी बनी
औ बनी नगरवधू
धैर्य कभी न हारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
वनकन्या सी रही कभी,
कभी बंद कर दिया मुझे
सांस चले बस इतना सा
जीने को खुला था मुख मेरा
जीवित थी फिर भी
सौ उन पर मैं भारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
जीने की ललक मुझ में भी थी
जीवन मेरा सब जैसा था,
जुबान मेरे मुख में भी थी
पर बेजुबान बना दिया मुझे
बस उस वक्त की मारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
आज चली हूँ मर्जी से
आधी दुनिया में तूफान मचा
कैसे नकेल डालें इसको
जुगत कुछ ऐसी खोज रहे
कहीं बगावत बनी मौत
औ कहीं जीती मैं पारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
अब छोडो मुझे
जीने भी दो
तुम सा जीवन मेरा भी है
अपने अपने घर में झांको
मैं ही दुनियाँ सारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
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