सोमवार, 2 अप्रैल 2012

मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ

मुझे किसी ने न जाना
किसी ने न पहचाना

मैं नारी हूँ
मेरा काम है लड़ते जाना।



लड़ती हूँ मैं पुराने रीति-रिवाजों से
करती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित
अंधविश्वासों की आँधी से
रहती हूँ हरदम अभावों में
पर देती हूँ अभयदान।
मैं नारी हूँ ...

उलझी रहती हूँ सवालों में
जकड़ी रहती हूँ मर्यादा की बेड़ियों में
बदनामी का ठिकरा हमेशा
फोड़ा जाता है मुझ पर
मैं हँसते-हँसते हो जाती हूँ कुर्बान।
मैं नारी हूँ ...

नए रिश्तों की उलझन में
उलझी रहती हूँ मैं
पर पुराने को निभाकर
हरदम चलती हूँ मैं
रिश्तों में जीना और मरना काम है मेरा।
मैं नारी हूँ ...

12 टिप्‍पणियां:

sm ने कहा…

nice poem
its very difficult to understand females.

बेनामी ने कहा…

bahut hi umda rachna hai aap ki bdhaai.....

रविकर ने कहा…

सही दिशा में |
बधाई ||

दिगम्बर नासवा ने कहा…

नारी को शुरू से ही घर की चौखट में डाला है पुरुष ने अपने स्वार्थ के लिए ... अच्छा लिखा है ...

अंजना ने कहा…

सुन्दर ....

प्रेम सरोवर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Coral ने कहा…

सुन्दर !

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

wah bilkul yatharth chitran...badhai.

संजय भास्‍कर ने कहा…

अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ सशक्‍त अभिव्‍यक्ति।

संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

virendra sharma ने कहा…

समझौता और संघर्ष ,स्वीकार हैं सहर्ष ,मैं नारी हूँ .

My Blog ने कहा…

nice poetry

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

मैं नारी हूँ... सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.