मैं नारी हूँ
मुझे किसी ने न जाना
किसी ने न पहचाना
मैं नारी हूँ
मेरा काम है लड़ते जाना।
लड़ती हूँ मैं पुराने रीति-रिवाजों से
करती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित
अंधविश्वासों की आँधी से
रहती हूँ हरदम अभावों में
पर देती हूँ अभयदान।
मैं नारी हूँ ...
उलझी रहती हूँ सवालों में
जकड़ी रहती हूँ मर्यादा की बेड़ियों में
बदनामी का ठिकरा हमेशा
फोड़ा जाता है मुझ पर
मैं हँसते-हँसते हो जाती हूँ कुर्बान।
मैं नारी हूँ ...
नए रिश्तों की उलझन में
उलझी रहती हूँ मैं
पर पुराने को निभाकर
हरदम चलती हूँ मैं
रिश्तों में जीना और मरना काम है मेरा।
मैं नारी हूँ ...
मुझे किसी ने न जाना
किसी ने न पहचाना
मैं नारी हूँ
मेरा काम है लड़ते जाना।
लड़ती हूँ मैं पुराने रीति-रिवाजों से
करती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित
अंधविश्वासों की आँधी से
रहती हूँ हरदम अभावों में
पर देती हूँ अभयदान।
मैं नारी हूँ ...
उलझी रहती हूँ सवालों में
जकड़ी रहती हूँ मर्यादा की बेड़ियों में
बदनामी का ठिकरा हमेशा
फोड़ा जाता है मुझ पर
मैं हँसते-हँसते हो जाती हूँ कुर्बान।
मैं नारी हूँ ...
नए रिश्तों की उलझन में
उलझी रहती हूँ मैं
पर पुराने को निभाकर
हरदम चलती हूँ मैं
रिश्तों में जीना और मरना काम है मेरा।
मैं नारी हूँ ...
12 टिप्पणियां:
nice poem
its very difficult to understand females.
bahut hi umda rachna hai aap ki bdhaai.....
सही दिशा में |
बधाई ||
नारी को शुरू से ही घर की चौखट में डाला है पुरुष ने अपने स्वार्थ के लिए ... अच्छा लिखा है ...
सुन्दर ....
सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
सुन्दर !
wah bilkul yatharth chitran...badhai.
अच्छे शब्द संयोजन के साथ सशक्त अभिव्यक्ति।
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
समझौता और संघर्ष ,स्वीकार हैं सहर्ष ,मैं नारी हूँ .
nice poetry
मैं नारी हूँ... सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.
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