सोमवार, 5 मार्च 2012
मैं नारी हूँ
मैं साकार कल्पना हूँ
मैं जीवंत प्रतिमा हूँ
मैं अखंड अविनाशी शक्तिस्वरूपा हूँ
मैं जननी हूँ,श्रष्टि का आरम्भ है मुझसे
मैं अलंकार हूँ,साहित्य सुसज्जित है मुझसे
मैं अलौकिक उपमा हूँ
मैं भक्ति हूँ,आराधना हूँ
मैं शाश्वत,सत्य और संवेदना हूँ
मैं निराकार हूँ,जीवन का आकार है मुझसे
मैं प्राण हूँ,सृजन का आधार है मुझसे
मैं नीति की संज्ञा हूँ
मैं उन्मुक्त आकांक्षा हूँ
मैं मनोज्ञा मंदाकिनी मधुरिमा हूँ
मैं अनर्थ को अर्थ देती परिकल्पना हूँ
मैं असत्य अधर्म अन्धकार की आलोचना हूँ
मैं अनंत आकाश की अभिव्यक्ति हूँ
मैं सहनशील हूँ समर्थ हूँ,मैं शक्ति हूँ
मेरा कोई रूप नहीं दूसरा
मैं स्वयं का प्रतिबिम्ब हूँ
मेरा कोई अर्थ नही दूसरा
मैं शब्द मुक्त हूँ मैं पूर्ण हूँ
मैं नारी हूँ
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8 टिप्पणियां:
bahut sundar paribhasha
bahut hi umda rachna!
बहुत उत्क्रष्ट प्रस्तुति...
बहुत अच्छी परिभाषा दी ही नारी की ...
बहुत खुबसूरत शब्दों से सजाई गई एक खुबसूरत रचना .
बधाई
ji han chid shkti hi srjan aur visrjn dono ka karak hai bdhai
मैं शब्दमुक्त हूँ, पूर्ण हूँ... वाह!
बहुत सुन्दर रचना...
बधाईयां
बहुत सुन्दर रचना!
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