लोटा दो वो बचपन की यादे , वो गलियों ,वो नुकढ़ की बाते
लोटा दो मेरे जीते कंचे जो बाकि है | वो रंगबिंगी पत्नगे
वो सपनो की राजकुमारी लोटा दो वो दादा जी की कहानी
वो ऊंट की सवारी , वो १० पेसे की पेन्सिल ,
वो चुपके गुटके कहने की आदत , लोटा दो वो बचपन की बाते मेरी बचपन की यादे ,
वो मासूम चेहरा , वो मासूमियत की लाली
क्यों नहीं लोटा ते वो बचपन की शेतानी
ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
माँ जो बचपन में करती वो प्यार चाहिए
लोटा दो वो मेरा बचपन की बाते वो वो आँखों के आंसू
काश कोई लोटा दे वो बचपन का गुजरा जमाना
माँ पिता का वो प्यार वो मनुहार,
वो डांट फटकार, वो रोना मचलना,
वो रोती आँखों से मुस्कुराना याद आ गया,
बस रह गई एक कसक इतनी,
वो गुजरा जमाना जिसे छोड़ आये थे राह में कहीं,
अब भी खड़ा ताकता होगा राह उसी राहगुजर में,
पर बेबस हूँ मैं जा नहीं सकता वापिस,
उसकी यादो संग हसना रोना अब किस्मत मेरी,
वो गुजरा जमाना याद आ गया,
कोई तो लोटा दो वो बचपन की यादे , वो गलियों ,वो नुकढ़ की बाते
दिनेश पारीक
5 टिप्पणियां:
कल 24/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
अति सुन्दर ..हार्दिक बधाई..
bachpan ki yaaden, behtareen!!
बचपन और यादें हमेशा साथ-साथ ...
बहुत खूब...बस याद ना जाए उन बीतें दिनों की |
मेरा ब्लॉग आपके इंतजार मे,समय मिलें तो बस एक झलक-"मन के कोने से..."
आभार..|
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