मंगलवार, 11 जनवरी 2011
लड़की, बाहर आओ तोड़ के सिमटते हुये दायरे को छत के कोने पर खड़े हो फैलाओ
बाहर आओ
तोड़ के सिमटते हुये दायरे को
छत के कोने पर खड़े हो फैलाओ बाहों को
महसूस करो हवा में तैरने के लिये
तुम कभी लगा सकती हो छलाँग
अनंत में तोड़ते हुये सारे बंधनों को
हथेलियों में,
क़ैद करो हवा में घुली हुई नमी को
और मुरझाते हुये सपनों को ताज़ा दम कर लो
या गूँथो कोई नया संकल्प
सुनो
हवा में गूँजते हुये संगीत को
और चुरा कर रखो किसी टुकड़े को अपने अंदर
वहीं, जहाँ तुम रखती हो अपनी सिसकियाँ सहेज कर
और छाने दो संगीत का खु़मार सिसकियों पर
देखो ठहरे हुये
पराग कणों को तुम्हारी चेहरे पर
और पनाह दो आँखों के नीचे बन आये काले दायरो में/
या बुनी जा रही झुर्रीयों में
और फूलने दो नव-पल्लव विषाद रेखाओं के बीच
महसूस करो,
हवा में पल रही आग को
और उतार लो तपन को अपने सीने में
जहाँ रह-रह कर उमड़ते हैं ज्वार
और लौट आते हैं अलकों की सीमा से टकराकर
लड़की,
बाहर आओ, उठ खड़ी होओ
दीवार के बाद पीछे कोई जगह नहीं होती
और यदि कोने में हो तो कुछ और नहीं हो सकता
कब तक घुटनों पर रख सकोगी सिर/
आँसुओं का सैलाब बहाओगी/
अँधेरे में सिमटती रोशनी सी
कब तक लड़ सकोगी अकेली फड़फ़डाते हुये
लड़की,
बाहर आ
सोमवार, 10 जनवरी 2011
मैं एक बहन एक बेटी एक औरत हूँ
एक बहन
एक बेटी
एक औरत हूँ
एक औरत जो न जाने कब से नंगे पाँव
रेगिस्तान की धदकती बालू मैं भागती रही है !
मैं सुदूर उत्तर के गाँव से आई हूँ
एक औरत जो न जाने कब से के धान खेतों मे,
और चाय के बागानों मे, अपनी ताकत से ज़यादा मेहनत करती आई है !
मैं पूरब के अँधेरे खंडहरों से आई हूँ
जंहा मैंने न जाने कब से नंगे पांव सुबह से शाम तक,
अपनी मरियल गाय के साथ, खलियानों मे दर्द का बोझ उठाया है
मैं एक औरत हूँ,
उन बंजारों मे से जो तमाम दुनिया मे भटकते फिरते हैं
एक औरत जो पहाड़ों की गोद मे बच्चे जनती है जिसकी
बकरी मैदानों मे कंही मर जाती है और वो बैन करती रह जाती हे
मैं एक मजदूर औरत हूँ
जो अपने हाथों से फेक्टरी में
देवकाय मशीनों के चक्के घुमती है
वो मशीने जो उसकी ताकत को
ऐन उसकी आँखों के सामने
हर दिन नोचा करती है
एक औरत जिसके खून से खूंखार कंकालों की प्यास बुझती है
एक औरत जिसका खून बहने से सरमायेदार का मुनाफा बढता है
एक औरत जिसके लिए तुम्हारी बेहूदा शब्दावली मे,
एक शब्द भी ऐसा नहीं जो उसके महत्त्व को बयां कर सके
तुम्हारी शब्दावली केवल उस औरत की बात करती है
जिसके हाथ साफ हैं
जिसका शरीर नर्म है
जिसकी त्वचा मुलायम है
और जिसके बाल खुशबूदार हैं
मैं तो वो औरत हूँ
जिसके हाथों को दर्द की पैनी छुरियों ने घायल कर दिया
एक औरत जिसका बदन तुम्हारे अंतहीन
शर्मनाक और कमरतोड़ काम से टूट चुका है
एक औरत जिसकी खाल मे
रेगिस्तानो की झलक दिखाई देती है
जिसके बालों से फेक्टरी के धुंए की बदबू आती है !
मैं एक आज़ाद औरत हूँ
जो अपने कामरेड भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर
मैदान पार करती है
एक औरत जिसने मजदूर के मजबूत हाथों की रचना की है
और किसान की बलवान भुजाओं की
मैं खुद भी एक मजदूर हूँ
मैं खुद भी एक किसान हूँ मेरा पूरा जिस्म दर्द की तस्वीर है
मेरी रग - रग में नफ़रत की आग भरी है
और तुम कितनी बेशर्मी से कहते हो
की मेरी भूक एक भ्रम है
और मेरा नंगापन एक ख्वाब
एक औरत जिसके लिए तुम्हारी बेहूदा शब्दावली में एक शब्द भी ऐसा नहीं
जो उसके महत्त्व को बयान कर सके
एक औरत जिसके सीने में
गुस्से से फफकते नासूरों से भरा एक दिल छिपा है
एक औरत जिसकी आँखों में आज़ादी की आग के लाल साये लहरा रहे हैं
एक औरत जिसके हाथ काम करते करते सीख गये हैं कि
अपने हक के लिए झंडा कैसे उठाया जाता है
मैं एक बहन एक बेटी एक औरत हूँ
एक बहन
एक बेटी
एक औरत हूँ
एक औरत जो न जाने कब से नंगे पाँव
रेगिस्तान की धदकती बालू मैं भागती रही है !
मैं सुदूर उत्तर के गाँव से आई हूँ
एक औरत जो न जाने कब से के धान खेतों मे,
और चाय के बागानों मे, अपनी ताकत से ज़यादा मेहनत करती आई है !
मैं पूरब के अँधेरे खंडहरों से आई हूँ
जंहा मैंने न जाने कब से नंगे पांव सुबह से शाम तक,
अपनी मरियल गाय के साथ, खलियानों मे दर्द का बोझ उठाया है
मैं एक औरत हूँ,
उन बंजारों मे से जो तमाम दुनिया मे भटकते फिरते हैं
एक औरत जो पहाड़ों की गोद मे बच्चे जनती है जिसकी
बकरी मैदानों मे कंही मर जाती है और वो बैन करती रह जाती हे
मैं एक मजदूर औरत हूँ
जो अपने हाथों से फेक्टरी में
देवकाय मशीनों के चक्के घुमती है
वो मशीने जो उसकी ताकत को
ऐन उसकी आँखों के सामने
हर दिन नोचा करती है
एक औरत जिसके खून से खूंखार कंकालों की प्यास बुझती है
एक औरत जिसका खून बहने से सरमायेदार का मुनाफा बढता है
एक औरत जिसके लिए तुम्हारी बेहूदा शब्दावली मे,
एक शब्द भी ऐसा नहीं जो उसके महत्त्व को बयां कर सके
तुम्हारी शब्दावली केवल उस औरत की बात करती है
जिसके हाथ साफ हैं
जिसका शरीर नर्म है
जिसकी त्वचा मुलायम है
और जिसके बाल खुशबूदार हैं
मैं तो वो औरत हूँ
जिसके हाथों को दर्द की पैनी छुरियों ने घायल कर दिया
एक औरत जिसका बदन तुम्हारे अंतहीन
शर्मनाक और कमरतोड़ काम से टूट चुका है
एक औरत जिसकी खाल मे
रेगिस्तानो की झलक दिखाई देती है
जिसके बालों से फेक्टरी के धुंए की बदबू आती है !
मैं एक आज़ाद औरत हूँ
जो अपने कामरेड भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर
मैदान पार करती है
एक औरत जिसने मजदूर के मजबूत हाथों की रचना की है
और किसान की बलवान भुजाओं की
मैं खुद भी एक मजदूर हूँ
मैं खुद भी एक किसान हूँ मेरा पूरा जिस्म दर्द की तस्वीर है
मेरी रग - रग में नफ़रत की आग भरी है
और तुम कितनी बेशर्मी से कहते हो
की मेरी भूक एक भ्रम है
और मेरा नंगापन एक ख्वाब
एक औरत जिसके लिए तुम्हारी बेहूदा शब्दावली में एक शब्द भी ऐसा नहीं
जो उसके महत्त्व को बयान कर सके
एक औरत जिसके सीने में
गुस्से से फफकते नासूरों से भरा एक दिल छिपा है
एक औरत जिसकी आँखों में आज़ादी की आग के लाल साये लहरा रहे हैं
एक औरत जिसके हाथ काम करते करते सीख गये हैं कि
अपने हक के लिए झंडा कैसे उठाया जाता है
रविवार, 9 जनवरी 2011
जब ज़िन्दग़ी बेगानी लगती है
तो मुड़कर देखती हूँ अपनी कविताएँ।
मैं क्या थी क्या हो गई हूँ,
शायद कोई अता-पता मिल जाए।
बता देती हैं ये कि मैंने
क्या खोया है, क्या पाया है,
क्या भूली हूँ, क्या सीखा है,
क्या सोचकर क्या गुनगुनाया है।
मिल जाता है इनमें मुझे कि
मैंने क्या सोचा था, क्या देखा था कभी।
बदलाव मुझमें भी नज़र आ जाता है
सोचकर कि क्या नज़रिया है अभी।
मैं क्या सोचती हूँ, क्या देखती हूँ,
क्या मानती हूँ, क्या जानती हूँ,
क्या चाहती हूँ, क्या कहती हूँ,
क्या खोजती हूँ, क्या मानती हूँ?
अब तक के इस सफ़र में मैंने
क्या खोया है, क्या पाया है?
सम्पूर्ण रूप में ऐसा कहो -
मेरा पूरा परिचय क्या है?
ढूँढ़ना चाहते हो तो ढूँढ़ो
शायद इन्हीं में मिल जाए,
क्योंकि मैं तो मेरी कविताएँ ही हूँ,
और मेरी पहचान, मेरी कविताएँ।
शनिवार, 8 जनवरी 2011
हर जनम में पाऊँ कन्या रूप
समुद्र के गर्भ में छिपे सीप की कोख में पलते मोती की नैसर्गिक चमक, बंद कोंपलों में खिलते फूल का मादक यौवन या फिर तपती धरती पर नीले नभ से गिरी बारिश की पहली बूँद की शीतलता ... ये सभी सृजन के रूप हैं ... प्रकृति ने यही वरदान स्त्री को भी दिया है। उसकी कोख से जन्मी बेटियाँ ही इस वरदान को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाती हैं।
वह दौर बीत गया जब लड़कियों के जन्म पर शोक छा जाता था। आज तो बेटियाँ वो पावन दुआएँ हैं, जो हर क्षेत्र में अपनी सफलता के लिए आदर्श बन रही हैं। आज की नारी इन सभी पुराने अंधविश्वासों व रूढ़ियों पर विजय पाकर अपनी श्रेष्ठता का प्रतिपादन कर रही है। आज हर नारी को अपने कन्या रूप में जन्म लेने पर शर्म नहीं बल्कि गौरव महसूस होता है। हमने महिला सशक्तिकरण के इस दौर में कई महिलाओं से चर्चा की व जाना कि क्या वे अगले जन्म में फिर से लड़की के रूप में जन्म लेना चाहेंगी या नहीं?
शुक्रवार, 7 जनवरी 2011
स्नेहदात्री माँ! आपको मेरे कन्या होने का पता चल गया है और आप मुझ मासूम को जन्म लेने से से रोकने जा रही हैं। यह सुनकर मुझे तो यकी नही नहीं हुआ। भला मेरी प्यारीप्यारी कोमल ह्रदया मां ऐसा कैसे कर सकती है? कोख में पल रही अपनी लाडली के सुकुमार शरीर नश्तरों की चुभन एक मां कैेसे सह सकती है?
पुण्यशीला माँ! बस, आप एक बार कह दीजिये के यह जो कुछ मैने सुना है वह सब झूठ है। दरअसल यह सब सुनकर मै दहल सी गई हँूं। मेरे तो हाथ भी इतने कोमल है कि इनसे डाक्टर की क्लीनिक की तरफ जाते वक्त आपकी चुन्नी ज़ोर से नहीं खींच सकती ताकि आपको रोक लूँ। मेरी बांह भी इतनीपतली और कमजोर है कि इन्हें आपके गले में डालकर लिपट भी नहीं सकती।
स्नेहदात्री माँ! आपको मेरे कन्या होने का पता चल गया है और आप मुझ मासूम को जन्म लेने से से रोकने जा रही हैं। यह सुनकर मुझे तो यकी नही नहीं हुआ। भला मेरी प्यारीप्यारी कोमल ह्रदया मां ऐसा कैसे कर सकती है? कोख में पल रही अपनी लाडली के सुकुमार शरीर नश्तरों की चुभन एक मां कैेसे सह सकती है?
पुण्यशीला माँ! बस, आप एक बार कह दीजिये के यह जो कुछ मैने सुना है वह सब झूठ है। दरअसल यह सब सुनकर मै दहल सी गई हँूं। मेरे तो हाथ भी इतने कोमल है कि इनसे डाक्टर की क्लीनिक की तरफ जाते वक्त आपकी चुन्नी ज़ोर से नहीं खींच सकती ताकि आपको रोक लूँ। मेरी बांह भी इतनीपतली और कमजोर है कि इन्हें आपके गले में डालकर लिपट भी नहीं सकती।
गुरुवार, 6 जनवरी 2011
एक खूबसूरत अहसास है- माँ
एक खूबसूरत अहसास है- माँ
हर मुश्किल में हमारा विश्वास है- माँ
हमारे लिए सारी दुनिया है- माँ
क्यूँकि, बच्चों के लिए खुशियाँ है- माँ
जिसकी गोद हर गम से निजात दिलाती है, वो है- माँ
मेरी हर तकलीफ में याद आती है मुझे- माँ
मेरे सिर पर हाथ रखकर, राहत देती है- माँ
इस मतलबी दुनिया में जिसे कोई मतलब नही , वो है – माँ
धरती पर खुदा का दर्शन है – माँ
दोगली दुनिया में सच्चा दर्पण है – माँ
मंज़िलों के लिए मैं नही जीता, मेरा रास्ता है- माँ
खुदा का भेजा हुआ, एक फरिश्ता है- माँ
सच तो ये है की तुम क्या हो माँ,
मैं लिख नही सकता, बता नही सकता………………….. माँ
रविवार, 2 जनवरी 2011
कश्मीर समस्या और भारतीय मुसलमानों का रुख .... KASHMIR ISSUE & INDIAN MUSLIMS
ऐसे परिप्रेक्ष्य में कश्मीर की समस्या का वैश्विक आतंकवाद से क्या लेना देना रहा है ये जानने के लिए हमें दोबारा , इतिहास को समझने की कोशिश करनी पड़ेगी | 1980 के दशक के अंतिम वर्षों में जब कश्मीर में इस्लामिक आतंकवाद ने पैर पसारना शुरू किया तब से लेकर आजतक यह ७०००० हजार मासूमों की हत्या कर चुका है लेकिन छोटे - छोटे फर्जी मुठभेडों के मुद्दे पर मानवाधिकार के आंसू बहाने वाले मुस्लिम संगठनों ने आज तक इसकी निंदा में ना तो कोई कोई प्रस्ताव ही रखा है और ना ही बात बात पर फतवा जारी करने वाले इस पर कोई कारगर पहल ही कर सके हैं |
बदले परिप्रेक्ष्य में भारतीय मुसलमानों की एक बड़ी संख्या कश्मीर को हिन्दू - मुस्लिम समस्या के रूप में देखने से इनकार कर रही है | अब कश्मीर के संघर्ष को एक नया नाम दिया जा रहा है जिसमें कश्मीर की जंग को भारतीय मुसलमानों की नज़र में शोषण और अन्याय के खिलाफ युद्घ की संज्ञा देने का निरर्थक और दण्डनीय प्रयास किया जा रहा है | इस काम में डॉ जाकिर नाइक जैसे अरब देशों के पैसों पर पलने वाले कुप्रचारियों से प्रभावित होकर आजकल पढ़ेलिखे मुस्लिम युवा तेजी से लिप्त हो रहे हैं | जेहाद का यह नवीनतम रूप बेहद खतरनाक है | |
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कश्मीर समस्या और भारतीय मुसलमानों का रुख .... KASHMIR ISSUE & INDIAN MUSLIMS
ऐसे परिप्रेक्ष्य में कश्मीर की समस्या का वैश्विक आतंकवाद से क्या लेना देना रहा है ये जानने के लिए हमें दोबारा , इतिहास को समझने की कोशिश करनी पड़ेगी | 1980 के दशक के अंतिम वर्षों में जब कश्मीर में इस्लामिक आतंकवाद ने पैर पसारना शुरू किया तब से लेकर आजतक यह ७०००० हजार मासूमों की हत्या कर चुका है लेकिन छोटे - छोटे फर्जी मुठभेडों के मुद्दे पर मानवाधिकार के आंसू बहाने वाले मुस्लिम संगठनों ने आज तक इसकी निंदा में ना तो कोई कोई प्रस्ताव ही रखा है और ना ही बात बात पर फतवा जारी करने वाले इस पर कोई कारगर पहल ही कर सके हैं |
बदले परिप्रेक्ष्य में भारतीय मुसलमानों की एक बड़ी संख्या कश्मीर को हिन्दू - मुस्लिम समस्या के रूप में देखने से इनकार कर रही है | अब कश्मीर के संघर्ष को एक नया नाम दिया जा रहा है जिसमें कश्मीर की जंग को भारतीय मुसलमानों की नज़र में शोषण और अन्याय के खिलाफ युद्घ की संज्ञा देने का निरर्थक और दण्डनीय प्रयास किया जा रहा है | इस काम में डॉ जाकिर नाइक जैसे अरब देशों के पैसों पर पलने वाले कुप्रचारियों से प्रभावित होकर आजकल पढ़ेलिखे मुस्लिम युवा तेजी से लिप्त हो रहे हैं | जेहाद का यह नवीनतम रूप बेहद खतरनाक है | |
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