गुरुवार, 3 मार्च 2011

मंजिल मुश्किल तो क्या…धुंधला साहिल तो क्या

गोधरा कांड के जख्म अभी तक नहीं भरे हैं. इस एक कांड ने जहां हमारी अखंडता पर कई सवाल पैदा किए, वहीं हमें यह भी बता दिया की राजनीति की कीचड़ किस तरह इंसानियत पर कालिख पोत रही है. मामले में विशेष कोर्ट का फैसला आ चुका है. जिसमें 11 लोगों को फांसी और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. इन सबसे इतर कुछ ऐसे भी लोग हैं जो वैमन्स्यता की इस दीवार को तोड़ देने के लिए दिल से कोशिशों में जुटे हुए हैं. यह लोग भले ही मुट्ठी भर लोग हैं, लेकिन किसी तरह नफरत को खत्म करने की अपनी कोशिशों में कामयाब होने की चाह रखते हैं. अहमदाबाद में वह जगह जहां साबरमती एक्सप्रेस पर हमला हुआ था, वहां हारून नाम का मुस्लिम युवक पिछले आठ महिनों से हिन्दू बस्ती में जाकर बच्चों को पढ़ा रहा है. यह वही जगह है जहां सन् 2002 में साबरमती एक्सप्रेस पर हमला किया गया गया था. यही नहीं इस युवक के साथ एक अन्य मुस्लिम युवक है जो हिंदू बच्चों को पढ़ा रहा है. मंदिर के एक ओर जहां हारून बच्चों को मैथ्स जैसे सब्जेक्ट पढ़ा रहा होता है, वहीं दूसरा युवक इमरान दूसरे सब्जेक्ट्स पढ़ाता है. गोधरा केस से छूटने वाले अपने एक रिश्तेदार की खबर सुनकर हारून फिर से अपने काम में तल्लीन हो गया है. राम मंदिर के आस-पास स्लम एरिया के हिंदू बच्चों को एजुकेटेड करने का बीड़ा उठाए हारून ने बीए और बीएड किया है. राम मंदिर में शाम को छह बजे से नौ बजे तक क्लासेज चलती हैं और यह क्लासेज यहां पर गोधरा के डॉ. शुजात वली ने शुरु करवाई हैं. इन टीचर्स का कहना है कि यहां पर ट्रस्टियों ने मुस्लिम युवकों द्वारा पढ़ाए जाने की व्यवस्था कबूल कर ली है. इन युवकों को यहां पर पढ़ाने में कोई परेशानी नहीं होती. यही नहीं स्लम एरिया के इन बच्चों को एजुकेटेड बनाने के मिशन से जुड़े इन युवकों ने कई अच्छी नौकरियों को भी एक्सेप्ट नहीं किया. एक ओर जहां गोधरा कांड का फैसला सुनाया जा रहा था और इस कांड को कोर्ट ने साजिश के तहत हुए कांड के रूप में स्वीकारा. वहीं इमरान और हारून जैसे युवक बस किसी तरह हालात को सुधारना चाहते हैं. इनका मानना है कि इनके द्वारा पढ़ाए गए बच्चे कभी मुसलमानों को घृणा की नजर से नहीं देखेंगे. यह युवक दंगों के दिए गए जख्मों को किसी तरह भरने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

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