गुरुवार, 3 मार्च 2011

समाज सुधार का ठेका

(तथाकथित) समाज सुधारकों को भला कौन नहीं जानता….इनकी अलग-अलग वैरावटी वाले लोग कभी न कभी आपसे भी जरूर टकराए होंगे. दूसरों को बिना मतलब सुधरने की राय देना इनकी फितरत में शुमार होता है. चलिए आपको भी इनकी अलग-अलग वैरायटी से रूबरू करा दूं. इनकी जो सबसे बड़ी क्वालिटी होती है वह है मामला भांपकर तुरंत रंग बदल लेना. जिस रौ में हवा बह रही होती है, यह तुरंत संग हो लेते हैं. आप जितना चाहें बच लें, घर-बाहर हर जगह से यह आपको खोज-खोजकर निकाल ही लेते हैं. ‘अहं ब्रह्मास्मि’ वाक्य को यह खुद में उतार लेते हैं. तभी तो खुद में चाहे तमाम बुराईयां हों, लेकिन इनके अंदर बैठा जानवर इन्हें खुद की बुराई करने की कतई इजाजत नहीं देता. सबसे मजेदार बात यह है कि समाज के सुधरने से ज्यादा इनके खुद के सुधरने की जरूरत होती है, लेकिन नहीं जी ये कोई ऐंवे ही हार थोड़े ही मानेंगे तथाकथित बुद्धिजीवी जो ठहरे. अब यह नहीं रहेंगे तो समाज की तो इज्जत लुट जाएगी न…..अपनी ढपली पर अपना राग सुनाने के साथ ही दूसरों की वाहवाही बटोरने लूटने की चाह इनकी नस-नस में समाई होती है. आप एक बार इनके (तथाकथित) समाज सुधार प्रोग्राम की पोल भर खोल दीजिए फिर देखिये ये किस तरह हाथ धोकर (नहा धोकर) आपके पीछे पड़ जाएंगे. अपने व्यंग्य बाणों से यूं बताएंगे कि ‘हीरो बात को जितनी जल्दी समझ ले अच्छा है, नहीं तो यही बात हम थप्पड़ मार कर भी समझा सकते हैं’. व्यंग्य के इतने तीर आप पर छोड़े जाएंगे और कुछ यूं घायल किया जाएगा कि आप तुरंत अपने हथियार फेंककर इनके शागिर्दी करने को तैयार हो जाएंगे.
ऐसा बिल्कुल मत सोचिए कि यह आपसे बहुत ‘कुछ’ चाहते हैं. आप तो बस इनकी हां में हां मिलाते रहिए, फिर देखिए इनकी भी वाह-वाह और आपकी भी. आप इनकी तारीफ में दो पंक्तियां लिख दें, यह आठ लिखेंगे और (स्व) समाज सुधार की राह में आपको भी अपने साथ ले लेंगे. फिर तो बस दुनिया में दो ही समाज सुधारक रह जाएंगे…एक यह महानुभाव और एक आप. अपने दोहरे चेहरे और डबल स्टैंडर्ड मैंटेलिटी को चालाकी से छिपा जाना कोई इनसे सीखे. मुंह में राम, बगल में छुरी रखे अपने यह (तथाकथित) समाजसुधारक साथी सुधार का नाम लेकर समाज का बैंड बजाने से भी पीछे नहीं हटते. इनका जितना गुणगान करते हुए शब्द खत्म हो जाएंगे, लेकिन समाज सुधारकों और सुधार की संभावनाएं नहीं
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