शर्म क्यों मगर हमें नहीं आती!
शर्म क्यों मगर हमें नहीं आती!
‘सच का सामना’ में एक प्रत्याशी राजीव खंडेलवाल के सामने हॉट सीट पर बैठा है। उससे सवाल पूछा जाता है- ‘क्या आपने विवाह से पहले अपनी प्रेमिका का अबॉर्शन कराया था?’ जवाब सुनने के लिए प्रत्याशी की मां भी सामने बैठी हैं। प्रत्याशी जवाब देता है-‘हां।’ कैमरा मां के चेहरे को फोकस में लेता है। राजीव प्रत्याशी की मां से पूछते हैं-‘जवाब सुन कर कैसा लगा?’ मां का जवाब है-‘यह सब तो आजकल चलता है।’ कल्पना कीजिये, यदि यही सवाल उस वृद्ध महिला की बेटी या बहू से पूछा होता तो भी क्या उनकी यही प्रतिक्रिया होती? शायद नहीं। यही हमारे समाज का असली सच है-लड़कियों के लिए और तथा लड़कों के लिए कुछ और। यानी लड़कों के सच लड़कियों के सच से नितांत अलग हैं। यूं भी निजी सच कोई बहुत ज्यादा अहमियत नहीं रखते। लेकिन जिस समाज में रह रहे लोगों के निजी सच इस तरह के हैं तो सोचिये उस समाज के अपने सच, सामूहिक सच किस तरह के होंगे? ‘सच का सामना’ ने और कुछ किया हो या न किया हो, लेकिन हमारे भीतर सोये हुए सत्यों को उद्घाटित करने के लिए हमें प्रेरित जरूर किया है। आज हम आपको रूबरू करवा रहे हैं, समाज के कुछ ऐसे सत्यों से, जिनसे हम वाकिफ तो हो सकते हैं, लेकिन हम इस बात पर सामूहिक रूप से शर्मिंदा कतई नहीं दिखाई पड़ते। और ये ऐसे सच हैं, जो किसी भी समाज की प्रगतिशीलता, समानता और उदारता पर बड़ा सवालिया निशान लगा देते हैं?
कुंआरेपन की परीक्षा
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में पिछले दिनों एक बेहद शर्मनाक कांड सामने आया। पता चला कि मध्य प्रदेश में सामूहिक विवाह का एक आयोजन किया जाना है। इसमें बड़ी संख्या में दलित और आदिवासी महिलाओं ने शिरकत की। विवाह के लिए जो महिलाएं आई थीं, उनका सामूहिक स्तर पर कौमार्य परीक्षण किया गया यानी उनके कुंआरेपन की परीक्षा ली गई। बाद में इस कांड पर लीपापोती की गयी। सवाल यह उठता है कि क्या हम अभी भी आदिम युग में जी रहे हैं? कौमार्य परीक्षण जैसी चीजें क्या आज के इस आधुनिक युग को बर्बर युग साबित नहीं करतीं? और क्या कौमार्य परीक्षण पुरुषों का नहीं होना चाहिए था? इस कौमार्य परीक्षण ने भारतीय समाज की ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की स्त्री जाति को अपमानित किया। और इस परीक्षण ने एक और बात यह साबित की कि जब कौमार्य परीक्षण सामूहिक स्तर पर हो सकता है तो निजी स्तर पर पुरुष न जाने कितनी लड़कियों का कौमार्य परीक्षण क
‘सच का सामना’ में एक प्रत्याशी राजीव खंडेलवाल के सामने हॉट सीट पर बैठा है। उससे सवाल पूछा जाता है- ‘क्या आपने विवाह से पहले अपनी प्रेमिका का अबॉर्शन कराया था?’ जवाब सुनने के लिए प्रत्याशी की मां भी सामने बैठी हैं। प्रत्याशी जवाब देता है-‘हां।’ कैमरा मां के चेहरे को फोकस में लेता है। राजीव प्रत्याशी की मां से पूछते हैं-‘जवाब सुन कर कैसा लगा?’ मां का जवाब है-‘यह सब तो आजकल चलता है।’ कल्पना कीजिये, यदि यही सवाल उस वृद्ध महिला की बेटी या बहू से पूछा होता तो भी क्या उनकी यही प्रतिक्रिया होती? शायद नहीं। यही हमारे समाज का असली सच है-लड़कियों के लिए और तथा लड़कों के लिए कुछ और। यानी लड़कों के सच लड़कियों के सच से नितांत अलग हैं। यूं भी निजी सच कोई बहुत ज्यादा अहमियत नहीं रखते। लेकिन जिस समाज में रह रहे लोगों के निजी सच इस तरह के हैं तो सोचिये उस समाज के अपने सच, सामूहिक सच किस तरह के होंगे? ‘सच का सामना’ ने और कुछ किया हो या न किया हो, लेकिन हमारे भीतर सोये हुए सत्यों को उद्घाटित करने के लिए हमें प्रेरित जरूर किया है। आज हम आपको रूबरू करवा रहे हैं, समाज के कुछ ऐसे सत्यों से, जिनसे हम वाकिफ तो हो सकते हैं, लेकिन हम इस बात पर सामूहिक रूप से शर्मिंदा कतई नहीं दिखाई पड़ते। और ये ऐसे सच हैं, जो किसी भी समाज की प्रगतिशीलता, समानता और उदारता पर बड़ा सवालिया निशान लगा देते हैं?
कुंआरेपन की परीक्षा
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में पिछले दिनों एक बेहद शर्मनाक कांड सामने आया। पता चला कि मध्य प्रदेश में सामूहिक विवाह का एक आयोजन किया जाना है। इसमें बड़ी संख्या में दलित और आदिवासी महिलाओं ने शिरकत की। विवाह के लिए जो महिलाएं आई थीं, उनका सामूहिक स्तर पर कौमार्य परीक्षण किया गया यानी उनके कुंआरेपन की परीक्षा ली गई। बाद में इस कांड पर लीपापोती की गयी। सवाल यह उठता है कि क्या हम अभी भी आदिम युग में जी रहे हैं? कौमार्य परीक्षण जैसी चीजें क्या आज के इस आधुनिक युग को बर्बर युग साबित नहीं करतीं? और क्या कौमार्य परीक्षण पुरुषों का नहीं होना चाहिए था? इस कौमार्य परीक्षण ने भारतीय समाज की ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की स्त्री जाति को अपमानित किया। और इस परीक्षण ने एक और बात यह साबित की कि जब कौमार्य परीक्षण सामूहिक स्तर पर हो सकता है तो निजी स्तर पर पुरुष न जाने कितनी लड़कियों का कौमार्य परीक्षण क
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thanks, enjoyed the article
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