मंगलवार, 29 मई 2012

मेरा मन


इस अंतर  मन को क्या मैं पुछु और क्या  मैं इस की सुनु
ख्वाबो में तो रोज़ मुलाकात होती हैं पर ये समझता ही चला जाता है
जाने मन के किस कोने में छुप सो जाती है, सच्चाई
फिर तो दुसरे दिन ही मुलाकात हो पति है
पर तब तक तो वो इरादा बदला चूका होता है
ये सुनता तो बहुत ही कम है
चलो दोस्तों आज फिर इस से मिलने का इरादा बनाते है इस खोजते है इस नभ में , इस  उपवन मैं  उस सपनो की नगरी मैं
चलो चलो >>>>..............

4 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

चलो चलें ...!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

वाह... बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

Shanti Garg ने कहा…

बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

Bahut Khoob...Thodi Typing error Khatakti hai....

Neeraj